मंच संचालन में कोई मुकाबला नहीं था मुन्नवर राना ने बताया कि अनवर जलालपुर की खासियत ये थी कि वह अंग्रेजी के लेक्चरर थे, उर्दु में शायरी सुनाते थे और घर की जुबान हिंदी थी। तीनों भाषाओं पर उनकी मजबूत पकड़ थी। वह प्रोज पर भी
ध्यान देते थे। इसके अलावा मुशायरे में मंच संचालन में तो उनका कोई जवाब ही नहीं था। मेरी आखिरी बार उनसे तीन दिन पहले ही मुलाकात हुई थी। वह कहीं मुशायरे में जा रहे थे। वह बोले तुम भी चलो लेकिन तबीयत ठीक न होने के कारण मैंं नहीं जा पाया। उनके अचानक से दुनिया से चले जाने का बेहद अफसोस है।
कवि व शायरों ने किया याद कवि सर्वेश अस्थाना ने अनवर जलालपुरी को याद करते हुए कहा कि उनका जाना कवि व शायरी प्रेमियों के लिए बड़ा झटका है। कुछ रोज पहले ही उनसे मुलाकात हुई थी। उनसे मेरा लगभग 25 साल पुराना नाता था। वह धार्मिक एकता के पैरोकार थे। जितने अच्छे मुशायरे के संचालक थे उतने ही अच्छे वक्ता भी थे। उनकी एक किताब की भूमिका भी मैंने लिखी थी। उनकी आम के पेड़ वाली शायरी मुझे सबसे ज्यादा पसंद थी।
सोच रहा हूँ घर आँगन में एक लगाऊँ आम का पेड़
खट्टा खट्टा, मीठा मीठा यानी तेरे नाम का पेड़ मिला था यश भारती अनवर जलालपुरी उत्तर प्रदेश में आंबेडकर नगर जिले के जलालपुर कस्बे के रहने वाले थे। मुशायरों के संचालन के तौर पर वह पूरी दुनिया भर में मशहूर थे। श्रीमदभागवत गीता का उर्दू शायरी में अनुवाद करने वाले नामचीन उर्दू शायर को प्रदेश सरकार ने यश भारती सम्मान से नवाजा था। शायर अनवर जलालपुरी ने हिंदू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवद गीता और उर्दू भाषा के मेल का अनोखा कारनामा कर दिखाया था।
मैं एक शायर हूँ मेरा रुतबा नहीं किसी भी वज़ीर जैसा
मगर मेरे फ़िक्र-ओ-फ़न का फ़ैलाव तो है बर्रे सग़ीर जैसा