करीब छह महीने पहले आईआईएम में एक अस्पताल की ओर से रक्तदान शिविर लगाया गया था। जिसमें छात्र-छात्राओं ने अपनी स्वेच्छा से रक्तदान किया था। खून की जांच के बाद छात्र-छात्राओं को ब्लड ग्रुप सहित सभी जानकारियां दी जाती हैं लेकिन उस समय डॉक्टरों ने सही जानकारी न देते हुए उसका ब्लड ग्रुप ओ-पॉजीटिव बताया।
तीन महीने बाद केजीएमयू ने फिर से रक्तदान शिविर लगाया। उसमें भी छात्रा ने रक्तदान किया लेकिन इस बार केजीएमयू की जांच में छात्रा में ए-पॉजीटिव ग्रुप की पहचान हुई। जिसे छात्रा को बताया गया। जब यह रिपोर्ट छात्रा ने देखी तो वह चौंक गई। इसके बाद छात्रा ने केजीएमयू ब्लड और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिकाचन्द्र से आपत्ति जाहिर की और दोबारा खून की जांच कराने की गुजारिश की।
कठिन जांच के बाद पता चला ग्रुप
छात्र की आपत्ति के बाद डॉ. तूलिका ने ब्लड ग्रुप की पहचान के लिए जांच कराई। दोबारा जांच में ब्लड ग्रुप ए ही निकला लेकिन उसमें दूसरी चीजे भी विशेषज्ञ को नजर आईं। खून में ए1 और ए2 एंटीजन नजर आया। इसकी वजह से असली एंटीबॉडीज का पता लगाने में विशेषज्ञ के सामने अड़चन आ गई। विशेषज्ञ ने पूरे मामले की जानकारी विभागाध्यक्ष डॉ. तूलिका चन्द्रा को दी। डॉ. तूलिका ने इम्यूनो मैगनेटिक टेक्नोलॉजी से खून के असली ग्रुप के लिए अध्ययन शुरू किया। ऑटोमेशन मशीन से एंटीबॉडीज की जांच हुई। इसमें ए एक्स ग्रुप की पहचान हुई।
ब्लड ग्रुप की जानकारी है जरूरी
डॉ. तूलिका चन्द्रा ने बताया कि दुर्लभ ग्रुप के खून वालों को अधिक संजीदा रहने की जरूरत होती है। दूसरे लोगों के मुकाबले खान-पान पर अधिक ध्यान देना चाहिए। बताया कि ऐसे लोगों को अपना ब्लड ग्रुप की जानकारी होनी चाहिए। ताकि जरूरत पड़ने पर खून चढ़ाने में किसी तरह की अड़चन न आए।