कोरोना संक्रमण तेजी से फैलने के बाद जब 24 मार्च से पूरे देश में लाॅक डाउन लगा दिया गया तो इसका पर्यावरण पर भी असर पड़ा और प्रदूषण कम हुआ। गंगा की निर्मलता में भी हैरान कर देेने वाला इजाफा हुआ। पर लाॅक डाउन में ढील दिये जाने के बाद से स्थिति फिर बदलने लगी और हालात बेहद खराब हो गए।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि उसके 30 माॅनिटरिंग सेंटरों में से 13 ऐसे हैं जहां गंगा की गुणवत्ता सी कैटेगरी की यानि असंतोषजनक पाई गई है। 15 सेंटरों पर हालात और खराब मिले हैं। इनपर प्रदूषण की स्थिति डी कैटेगरी की मिली है। ये हालात तब हैं जब गंगा का प्रदूषण दूर कर उसकी निर्मलता और अविरलता बहाल करने के लिये विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं।
यूपीपीसीबी के जारी आंकड़े गंगा में प्रदूषण पर नियंत्रण के दावों के बिल्कुल उलट हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदूषण थम नहीं रहा। स्थिति और अधिक खराब होती जा रही है। रिपोर्ट में अक्टूबर 2018 व अक्टूबर 2020 के जल गुणवत्ता आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन विश्लेषण करने पर 50 प्रतिशत माॅनिटरिंग स्थलों पर प्रदूषण काफी बढ़ा हुआ मिला। बोर्ड की ओर से अक्टूबर के महीने में गढ़मुक्तेश्वर के ब्रिज घाट और बदायूं के कछला घाट में की गई जांच में जल की गुण्वत्ता बी श्रेणि की मिली यानि बोर्ड के तय मानक के मुताबिक यहां पानी आचमन व नहाने के लायक है। हालांकि बाकी 28 की स्थिति बेहद खराब है।
गंगा ही नहीं सूबे की दूसरी नदियों और तालों में भी प्रदूषण की स्थिति बेहद खराब हुई है। पिछले दो सालों के बीच यूपी की राम गंगा, गोमती, वरुणा, हिंडन नदियों में भी प्रदूषण बेहद बढ़ा है। गोरखपुर के रामगढ़ ताल, उरई के माहिल तालाब और झांसी के लक्ष्मी तालाब के पानी की गुणवत्ता भी बेहद खराब हुई है।