अवध बार की जनहित याचिका पर इसके अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ताओं एचजीएसस परिहार, जेएन माथुर व एलपी मिश्र ने कहा कि पहले जीएसटी काउंसिल ने अपीलेट ट्रिब्यूनल लखनऊ में गठित करने का निर्णय लिया था, किन्तु बाद में अपना निर्णय बदल दिया जो कि बिना किसी आधार के व सरासर गलत है। उन्होंने कहा कि ऐसा इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक पीठ द्वारा जीएसटी के अधिकारियों की बार-बार तलबी से तंग आकर किया गया था। कहा गया कि लखनऊ में ट्रिब्यूनल बनने से राजधानी होने के नाते वादकारियों को ही सुविधा होगी।
लखनऊ के अधिवक्ता इस मुद्दे पर आंदोलन भी कर रहे हैं। उन्होंने 24 फरवरी से चल रहे न्यायिक कार्य के बहिष्कार को जारी रखने का निर्णय लिया। वकील शुक्रवार को भी न्यायिक कार्य से विरत रहे। बार एसोसिएशन के महामंत्री शरद पाठक ने बताया कि छह मार्च को आसपास के उन जिलों की बार एसोसिएशनों के पदाधिकारियो को आमंत्रित किया गया है, जिनको लखनऊ खंडपीठ से जोड़ने की मांग की जा रही है।
विदित हो कि जीएसटी ट्रिब्यूनल का गठन लखनऊ में किये जाने के संबंध में अवध बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट, लखनऊ में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में जीएसटी काउंसिल के 14 मार्च, 2020 के निर्णय को चुनौती दी गई है व मांग की गई है कि 21 फरवरी 2019 के प्रस्ताव पर अमल किया जाए। अवध बार की ओर से दलील दी गई है कि ट्रिब्यूनल की स्थापना के लिए हाई कोर्ट की प्रिंसिपल बेंच के लोकेशन का कोई महत्व नहीं है।
मालूम हो कि , वर्ष 2018 में राज्य सरकार ने जीएसटी की स्टेट बेंच लखनऊ में व एरिया बेंच की स्थापना प्रयागराज समेत 20 शहरों में किये जाने का अनुमोदन किया था। बाद में हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी 31 मई, 2019 को पारित अपने आदेश में कहा था कि ऐसा कोई न्यायिक निर्णय नहीं है कि प्रिंसिपल बेंच वाले शहर में ही जीएसटी ट्रिब्यूनल की स्थापना की जाए। अवध बार की ओर से दलील दी गई कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे के दबाव में पूर्व के प्रस्ताव को जीएसटी काउंसिल ने बदल दिया।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुख्य न्यायामूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति एसएस शमशेरी की खंडपीठ ने शिक्षा सेवा अधिकरण के गठन के बारे में भी ऐसा ही आदेश तीन मार्च को दिया था कि बिना उसकी अनुमति के ट्रिब्यूनल का गठन नहीं होगा।