
लखनऊ. होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है। भेदभाव मिटाकर पारस्परिक प्रेम व सदभाव प्रकट करने का यह एक खास अवसर है। अपने दुर्गुणों तथा कुसंस्कारों की आहुति देने का यह एक यज्ञ रुपी त्योहार है। होली सरल सहजता के सुख को उभारने का उत्सव है।
यह रंगोत्सव हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता है जो अनेक विषमताओं के बीच भी समाज में एकत्व का संचार करता है। होली के रंग-बिरंगे रंगों की बौछार जहां मन में एक सुखद अनुभूति प्रकट कराती है वहीं यदि सावधानी, संयम तथा विवेक न रखा जाये तो ये ही रंग दुखद भी हो जाते हैं। अतः इस पर्व पर कुछ सावधानियां रखना भी अत्यंत आवश्यक है।
इन बातों को रखें ध्यान
-प्राचीन समय में लोग पलाश के फूलों से बने रंग अथवा अबीर-गुलाल, कुम -कुम- हल्दी से होली खेलते थे। किन्तु वर्त्तमान समय में रासायनिक तत्त्वों से बने रंगों का उपयोग किया जाता है। ये रंग त्वचा पे चक्तों के रूप में जम जाते हैं। अतः ऐसे रंगों से बचना चाहिये, यदि किसी ने आप पर ऐसा रंग लगा दिया हो तो तुरन्त ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिये यदि उबटन करने से पूर्व उस स्थान को निंबू से रगड़कर साफ कर लिया जाए तो रंग छूटने में और अधिक सुगमता आ जाती है।
-रंग खेलने से पहले अपने शरीर को नारियल अथवा सरसों के तेल से अच्छी प्रकार मल लेना चाहिए। ताकि तेलयुक्त त्वचा पर रंग का दुष्प्रभाव न पड़े और साबुन लगाने मात्र से ही शरीर पर से रंग छूट जाये। रंग आंखों में या मुँह में न जाये इसकी विशेष सावधानी रखनी चाहिए। इससे आंखों तथा फेफड़ों को नुकसान हो सकता है।
-जो लोग कीचड़ व पशुओं के मलमूत्र से होली खेलते हैं वे स्वयं तो अपवित्र बनाते ही हैं साथ ही दूसरों को भी अपवित्र करने का पाप करते हैं। अतः ऐसे दुष्ट कार्य करने वालों से दूर ही रहें तो अच्छा है।
- वर्त्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भांग पीने की कुप्रथा है। नशे से चूर व्यक्ति विवेकहीन होकर घटिया से घटिया कुकृत्य कर बैठते हैं। अतः नशीले पदार्थ से तथा नशा करने वाले व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिये। आजकल सर्वत्र उन्न्मुक्तता का दौर चल पड़ा है। पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण में भारतीय समाज अपने भले बुरे का विवेक भी खोता चला जा रहा है। जो साधक है, संस्कृति का आदर करने वाले हैं, ईश्वर व गुरु में श्रद्धा रखते हैं ऐसे लोगो में शिष्टता व संयम विशेषरूप से होना चाहिये।
-होली मात्र लकड़ी के ढ़ेर जलाने का त्योहार नहीं है। यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने का, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है। अपने दुर्गुणों, व्यसनों व बुराईओं को जलाने का पर्व है होली।
-आज के दिन से विलासी वासनाओं का त्याग करके परमात्म प्रेम, सदभावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा, सत्संगनिष्ठा, स्वधर्म पालन , करुणा दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिये। भक्त प्रह्लाद जैसी दृढ़ ईश्वर निष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता, व समता का आह्वान करना चाहिये।
Updated on:
17 Mar 2022 12:20 pm
Published on:
17 Mar 2022 12:06 pm
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