जानकारी के अनुसार, गैस सिलेंडर से दुर्घटना में जान-माल की हानि होने पर 50 लाख रुपये तक का बीमा (Gas Cylinder Insurance Claim) मिलता है। हादसा होने पर 40 लाख का बीमा कवर मिलता है। हादसे में घायल होने पर पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को अधिकतम 10 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति की जाती है। सिलेंडर पर मिलने वाले इंश्योरेंस का पूरा खर्च संबंधित ऑयल कंपनियां उठाती हैं।
कौन कराता है बीमा पेट्रोलियम कंपनियों इंडियन ऑयल, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम तथा भारत पेट्रोलियम के वितरकों को यह बीमा कराना पड़ता है। इन लोगों को ग्राहकों और अन्य प्रॉपर्टीज के लिए थर्ड पार्टी बीमा कवर सहित दुर्घटनाओं के लिए बीमा पॉलिसी लेना होता है।
कैसे करें बीमा क्लेम बीमा क्लेम करने के लिए हादसे के 30 दिन के अंदर ग्राहक को इसकी सूचना पुलिस स्टेशन और एलपीजी वितरक को देनी होती है। बीमा रकम का दावा करने के लिए एफआईआर की कॉपी, घायलों के इलाज के खर्च का बिल और किसी की मृत्यु होने पर उसकी रिपोर्ट संभालकर रखनी चाहिए। सूचना दिए जाने के बाद संबंधित अधिकारी हादसों के कारणों की जांच करता है। अगर दुर्घटना एलपीजी की वजह से हुई है, तो वितरक गैस कंपनी को इसकी जानकारी देता है।
कौन देता है इंश्योरेंस क्लेम जब आप अपने एलपीजी वितरक (डिस्ट्रीब्यूटर) को हादसे के संबंध में जानकारी देते हैं तो वो संबंधित ऑयल कंपनी और इंश्योरेंस कंपनी को सूचित करता है। डिस्ट्रीब्यूटर ही कस्टमर को क्लेम के लिए जरूरी फॉर्मेलिटीज पूरी करवाने में मदद करता है। डिस्ट्रीब्यूटर्स और कस्टमर सर्विस सेल के पास सभी डिटेल्स होती हैं।
क्लेम से पहले चेक करें एक्सपायरी डेट सिलेंडर खरीदते वक्त ही उसका इन्श्योरेंस हो जाता है जो सिलेंडर की एक्सपायरी से जुड़ा होता है। अक्सर लोग सिलेंडर की एक्सपायरी डेट चेक किए बिना ही इसे खरीद लेते हैं। ऐसी स्थिती में आप इंश्योरेंस के लिए क्लेम करने के हकदार नहीं रह जाते हैं। गैस सिलेंडर की एक्सपाइरी डेट उसके रेगुलेटर पर चेक की जाती है। रेगुलेटर के पास तीन पट्टी होती है। उस पर A,B,C,D लिखा होता है। गैस कंपनी हर एक लेटर को तीन महीनों में बांट देती है। यहां पर A का मतलब जनवरी से मार्च और B का मतलब अप्रैल से जून तक होता है। इसी तरह से C का मतलब जुलाई से लेकर सितंबर और D का मतलब अक्टूबर से दिसंबर तक का होता है।