scriptअभी गोरखपुर की तरह दूसरे अस्पतालों में भी बच्चों की मौत होगी, क्योंकि…. | India spend only 14 Percentage of GDP on public health Its worlds lowest Ranking 112 in 190 countries Hindi News | Patrika News
लखनऊ

अभी गोरखपुर की तरह दूसरे अस्पतालों में भी बच्चों की मौत होगी, क्योंकि….

एक कटु सत्य : देश के अस्पतालों में नहीं थमेगा बच्चों की मौत का सिलसिला, क्योंकि…. जीडीपी का सिर्फ 1.4 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर होता है खर्च

लखनऊAug 17, 2017 / 01:06 pm

आलोक पाण्डेय

Public Health

Public Health

लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में 85 मासूमों की मौत ने झकझोर दिया। मौत की वजह आक्सीजन की किल्लत बताई गई है। बहरहाल, अंतिम सत्य को सामने लाने के लिए पड़ताल जारी है। बच्चों की मौत के बाद सियासी चक्कलस के दौरान उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने एक रिपोर्ट के हवाले से दावा किया कि गोरखपुर जैसे तमाम शहरों में सालाना सैकड़ों बच्चों की मौत होती है। तस्दीक करने पर सिद्धार्थनाथ का बयान सच साबित हुआ। अब सवाल है कि आखिर भारत में इलाज के दौरान मौत का ग्राफ इतना गगनचुंबी क्यों? जवाब यह है कि भारत में चिकित्सा सुविधा के साथ सौतेलापन होता है। देश में जीडीपी ((सकल घरेलू उत्पाद) का मात्र 1.4 फीसदी ही चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाने पर खर्च होता है। इसी कारण स्वास्थ्य पब्लिक स्वास्थ्य सेवा के मामले में दुनिया के 190 देशों में भारत 112 पायदान पर खड़ा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, आबादी के लिहाज से स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद खराब है, ऐसे में सुधार नहीं हुआ तो इलाज के दौरान मौत का ग्राफ कम करना मुमकिन नहीं है।
दुनिया में छह प्रतिशत, भारत में डेढ़ फीसदी भी नहीं

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनिया के अधिकांश देशों में सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए जीडीपी का औसतन छह फीसदी खर्च किया जाता है, जबकि भारत में जीडीपी की सिर्फ 1.4 फीसदी रकम ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होती है। मौजूदा दौर में भारत की जीडीपी 152.51 लाख करोड़ रुपए है। इस हिसाब से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सवा दो लाख करोड़ रुपए खर्च किये जाते हैं, जबकि डब्ल्यूएचओ मानक के मुताबिक यह रकम सालाना नौ लाख करोड़ खर्च होनी चाहिए।
गोरखपुर का उदाहरण समझें तो डरावनी तस्वीर दिखेगी

भारत में खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर देखने के लिए मौजूदा वक्त में गोरखपुर का उदाहरण सटीक रहेगा। पिछले सप्ताह 85 बच्चों की मौत के कारण चर्चित गोरखपुर में जनपद की कुल आबादी 45 लाख है। इस हिसाब से जिले में एक हजार से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए, लेकिन फिलवक्त सिर्फ 529 स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैं। इंसेफेलाइटिस के कारण प्रत्येक वर्ष तमाम मौतों का गवाह बनने वाले गोरखपुर शहर में सिर्फ 21 इंसेफेलाइटिस इलाज केंद्र हैं, जबकि शहर में सिर्फ पांच बालरोग विशेषज्ञ हैं। गोरखपुर की यह बानगी समूचे उत्तर प्रदेश और पड़ोसी राज्य बिहार-झारखंड की सच्ची तस्वीर को बयान करने के लिए काफी है।
बुनियादी सुविधाएं नहीं, इसीलिए बड़े अस्पताल पहुंचने में देर

गोरखपुर में बच्चों की मौत के मामले में आक्सीजन की कमी को कारण समझा जाए तो बड़े अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी पर सवालिया निशान लगते हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्येक वर्ष यूपी के पूर्वांचल और बिहार राज्य में इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियों के कारण ज्यादा मौतों की वजह प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी भी है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के नहीं होने के कारण बुखार जैसे लक्षण होने पर ग्रामीण देसी अथवा झोलाछाप इलाज करते रहते हैं। हालात खराब होने पर बड़े अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन उस वक्त तक मरीज की हालत बेहद खराब हो चुकी होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की सुविधा होने पर इंसेफेलाइटिस जैसे रोगों की शुरुआत में पहचान मुमकिन होगी।

Home / Lucknow / अभी गोरखपुर की तरह दूसरे अस्पतालों में भी बच्चों की मौत होगी, क्योंकि….

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो