लखनऊ.समाजवादी पार्टी में मचे घमासान के बीच उम्मीदवारों को चिंता सता रही है कि कहीं बाप-बेटे की लड़ाई में चुनाव आयोग ने साइकिल चुनाव चिन्ह को सीज कर लिया तो क्या होगा। चुनाव चिन्ह की इस लड़ाई से पहले भी कई बार सिंबल को लेकर जंग हो चुकी है। कांग्रेस और जनता पार्टी दो ऐसी प्रमुख पार्टियां हैं जिनमें पार्टी सिंबल को लेकर ज्यादा विवाद हुए थे। लेकिन शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि जिस साइकिल के लिए आज मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव लड़ रहे हैं उस चुनाव चिन्ह को कभी इंदिरा गांधी ठुकरा चुकी थीं।
जनता पार्टी
१९७७ में जय प्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी। मोरार जी देशाई प्रधानमंत्री बने। पार्टी का चुनाव चिन्ह था कंधे पर हल धरे किसान। पार्टी के नेता थे चंद्रशेखर। १९७९ में आपसी विवादों के बाद सरकार गिर गई। इसके बाद पार्टी के कई धड़े हो गए। जनता पार्टी के नेता बने सुब्रामणियम स्वामी। कंधे पर हल धरे चुनाव चिन्ह स्वामी को मिला। जनता पार्टी के दूसरे धड़े का नाम हुआ जनता दल। इसे चुनाव चिन्ह चक्र आवंटित किया गया। १९९१ के आम चुनावों में स्वामी ने समाजवादी जनता पार्टी बनाई। चंद्रशेखर इनके साथ थे। तब चक्र चुनाव चिन्ह पर वोट मांगे गए। २०१३ में जनता पार्टी का भाजपा में विलय हो गया। इस तरह चुनाव चिन्ह का अस्तित्व खत्म हो गया।
कांग्रेस
आजादी के बाद से हुए चार लोकसभा चुनावों तक में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी हुआ करता था। १९६९ में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का विभाजन हुआ। तब कांग्रेस आर और कांग्रेस ओ अस्तित्व में आईं। दोनों ने चुनाव चिन्ह पर दावा किया तब इसे फ्रीज कर दिया गया। तब इंदिरा गांधी ने गाय बछड़ा को चुनाव चिन्ह के लिए चुना। १९७१ के चुनावों में ये भारी बहुमत से जीतीं। १९७७ में जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गई तब कांग्रेस फिर बंटी। और कांग्रेस आई का नेतृत्व इंदिरा गांधी ने किया। इन्होंने चुनाव चिन्ह हाथ को स्वीकार किया। जबकि इनके पास साइकिल और हाथी चुनाव चिन्ह चुनने का विकल्प था। १९८४ में हाथी चुनाव चिन्ह को बहुजन समाज पार्टी ने चुन लिया। जबकि १९९२ में जब समाजवादी पार्टी का जन्म हुआ तब मुलायम सिंह यादव ने साइकिल चुनाव चिन्ह को चुना।