मरीज के दांतों को पीसकर बना दिया जबड़े की हड्डी, खर्च एक लाख के मुकाबले सिर्फ तीन हजार रुपये
– केजीएमयू नेम शुरू हुआ नया प्रयोग
– जबड़े का इलाज करने के लिए शरीर के दूसरे हिस्से की हड्डी की नहीं होगी जरूरत
– मरीज के दातों से ही होगा पूरा इलाज
– इलाज का खर्च भी होगा कम
मरीज के दांतों को पीसकर बना दिया जबड़े की हड्डी, खर्च एक लाख के मुकाबले सिर्फ तीन हजार रुपये
लखनऊ. केजीएमयू (KGMU) में नया वाक्या सामने आया है, जिसमें मरीज के दातों की पीसकर जबड़े की हड्डी बनाकर मरीज का इलाज किया जाएगा। खास बात यह है कि सस्ती होने के साथ ही यह प्रक्रिया पूरी तरह से संक्रमणरोधी है। इलाज का खर्च एक लाख के मुकाबले मात्र तीन हजार रुपये है।
केजीएमयू में बाराबंकी और कानपुर के दो ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें मरीज के दातों से ही जबड़े की हड्डी बनाई गई है। प्रोस्थोडॉटिक्स विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. लक्ष्य कुमार यादव ने बताया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से संक्रमणरोधी है। इसमें जांघ या चेस्ट की हड्डी की जगह मरीज के दातों से ही जबड़े की हड्डी का इलाज किया जाता है। जबड़े की हड्डी दुरुस्त होने से चेहरे के हिसाब से दांतों का डिजाइन तैयार किया जाता है। इसमें मरीज को खाने-पीनी की समस्या नहीं होती। साथ ही चेहरा भी बेहतर लगने लगता है।
संक्रमणरोधी है प्रक्रिया डॉक्टर ने बताया कि पायरिया होने पर तमाम लोगों के जबड़े की हड्डी गल जाती है। इसी तरह दुर्घटना होने पर भी जबड़ा टूट जाता है। ऐसी स्थिति में इस हड्डी की जगह प्लेट लगाई जाती है। कई बार जांघ या चेस्ट से हड्डी निकालकर उसकी ग्राफ्टिंग कर प्रत्यारोपित किया जाता है। लेकिन अब यह समस्या खत्म हो गई है। डेंटिंग ग्राइंडर के जरिए दांतों से ही जबड़े की हड्डी बनाई जाती है। जिस स्थान पर जबड़े की हड्डी नहीं है, इसे वहां प्रत्यारोपित किया जाता है। इसके बाद उस स्थान पर आर्टिफिशियल दांत लगाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि जबड़े की हड्डी बनने से किसी तरह का रिएक्शन नहीं होता है। खानपान में भी ज्यादा परेशानी नहीं होती। छोटा चीरा और टांका लगाया जाता है। मरीज को ज्यादा दवाएं भी नहीं खानी पड़ती।
बड़ी सर्जरी की नहीं जरूरत डॉक्टर लक्ष्य यादव ने बताया कि पहले की प्रक्रिया में जबड़े की हड्डी न होने पर उसे जांघ या चेस्ट से निकाला जाता है। फिर उसकी ग्राफ्टिंग कर साइज का मिलान किया जाता है। उसे जबड़े में फिट करने के लिए बड़ा चीरा लगाना पड़ता है। लेकिन नई प्रक्रिया में शरीर के दूसरे हिस्से की सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसमें दातों की पिसाई कर जबड़े की हड्डी में इस्तेमाल किया जाता है। नाप-जोख कर हड्डी बनाई जाती है। ऐसे में प्रत्यारोपित करने के लिए बड़ी सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती। इसी तरह जब संबंधित व्यक्ति के दांतों की हड्डी बनेगी तो शरीर में उसकी स्वीकार्यता रहेगी। किसी तरह का रिएक्शन होने की आशंका नहीं रहती है।
इलाज में सिर्फ ग्राइंडर का दाम देगा मरीज अभी तक जबड़े की हड्डी तैयार करने में तकरीबन एक लाख तक का खर्च आता था। लेकिन अब मरीज को सिर्फ ग्राइंडर का दाम देना होगा, जिसका मूल्य तीन हजार रुपये है। मरीज इस ग्राइंडर को अपने पास रखता है। अगर उसके जबड़े के किसी दूूसरे हिस्से में समस्या होती है और वहां हड्डी बनाने की जरूरत महसूस होती है, तो इसी ग्राइंडर का इस्तेमाल किया जाएगा।