scriptप्यास बुझाऊं या कोराना वायरस से बचूं, सरकार कहती है कोरोना से बचना है तो हाथ धोओ | Jhansi UP Government Thirst Coronavirus Bundelkhand wash hands Water | Patrika News
लखनऊ

प्यास बुझाऊं या कोराना वायरस से बचूं, सरकार कहती है कोरोना से बचना है तो हाथ धोओ

-यहां तो पीने का पानी ही नहीं,हाथ कहां से धोएं-बुंदेलखंड में इन दिनों दिन में दो बार हाथ धो रहे लोग, शौच क्रिया के समय और खाना खाने के वक्त

लखनऊJun 09, 2020 / 06:24 pm

Mahendra Pratap

प्यास बुझाऊं या कोराना वायरस से बचूं, सरकार कहती है कोरोना से बचना है तो हाथ धोओ

प्यास बुझाऊं या कोराना वायरस से बचूं, सरकार कहती है कोरोना से बचना है तो हाथ धोओ

पत्रिका इन्डेप्थ स्टोरी
महेंद्र प्रताप सिंह
झांसी. कोरोना से बचने के दो उपाय हैं। सोशल डिस्टेंसिंग और बार-बार हाथ धोना। लेकिन, इन दोनों ही नियमों का पालन बुंदेलखंड में संभव नहीं। क्योंकि यहां पानी ही नहीं है। दो बाल्टी पानी के लिए यहां हर रोज सुबह-शाम लंबी कतारें लगती हैं। पानी भरने की होड़ में सोशल डिस्टेंसिंग हर मिनट टूटती है। लंबी जद्दोजहद में दो बाल्टी पानी मिल गया तो इसी से पूरे परिवार को दिनभर काम चलाना होता है। ऐसे में इतने कम पानी से लोग प्यास बुझाएं या फिर कोरोना से बचने के लिए बार-बार हाथ धोएं। हालत यह है कि पानी की कमी की वजह से इन दिनों 90 प्रतिशत ग्रामीण दिन में सिर्फ दो बार हाथ धुल रहे हैं। खाना खाने के वक्त या फिर शौच क्रिया से निवृत्त होने के बाद।
बुंदेलखंड इलाके के लिए कहावत प्रचलित है-गगरी न फूटे, चाहे बलम मर जाए। यानी पति की मौत बर्दाश्त है लेकिन, पानी की गगरी फूटना नहीं। यह कहावत इस बात का संकेत है कि इस इलाके में पानी का संकट कितना भयावह है। बुंदेलखंड इलाके में यूपी के महोबा, बांदा, जालौन, चित्रकूट, हमीरपुर, झांसी और ललितपुर जिले आते हैं। अप्रेल-मई आते-आते यहां के तालाब, कुएं और हैंडपंप सूख जाते हैं। जून में तो समस्या और गहरा जाती है। इन दिनों यहां हर घर की महिलाएं और पुरुष सुबह उठते ही पहले पानी की तलाश में निकलते हैं। तब कहीं जाकर बमुश्किल दो बाल्टी पानी का इंतजाम हो पाता है। वह भी एक-दो किमी भटकने के बाद।
बारिश खत्म होते ही सूख जाती हैं नदियां :- बुंदेलखंड इलाके में नदियां तो हैं लेकिन वह सभी बरसाती हैं। यानी बारिश हुई तो पानी। खत्म हुई तो सूखा। पथरीले इलाके में कुआं खोदना बहुत दुश्कर काम है। पत्थर काट कर पानी मिल भी गया तो इतनी गहराई की निकालने में दम फूल जाए। तालाब और पोखरे भी बहुत कम हैं। जो हैं उनमें पानी नहीं रहता। इसलिए तकरीबन ७५ फीसदी आबादी हैंडपंप पर ही निर्भर है।
पानी के लिए हैंडपंप पर निर्भर, वह भी दे गए जवाब :- सरकारी आंकड़े की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार महोबा में 71.3 प्रतिशत, बांदा में 76.1प्रतिशत, जालौन में 76.6प्रतिशत, चित्रकूट में 72.1प्रतिशत, हमीरपुर में 75.2प्रतिशत, झांसी में 60 प्रतिशत और ललितपुर में 74 प्रतिशत घरों के लिए पीने का पानी का सहारा सिर्फ हैंडपंप ही है। लेकिन इन भीषण गर्मी में हैंडपंप भी जवाब दे गए हैं। ऐसे में पानी की बहुत किल्लत है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, महोबा में सिर्फ 7 प्रतिशत, बांदा में 13.3 प्रतिशत, जालौन में 26.6 प्रतिशत, चित्रकूट में 11.4 प्रतिशत, हमीरपुर में 13.2 प्रतिशत, झांसी में 20.1 प्रतिशत और ललितपुर में 10.3 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के घर में ही पानी की सुविधा है। बाकी लोग अन्य सार्वजनिक हैंडपंप या फिर कुएं आदि पर निर्भर हैं।
पानी के लिए हर रोज होते हैं झगड़े :- बुंदेलखंड में पानी को लेकर हर रोज झगड़े होते हैं। पहले पानी भरने के लेकर हैंडपंपो पर भीड़ जुटती है। लाइन भी लगी तो वह टूट जाती है। इसलिए यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पाता। कहने को हर गांव में एक सार्वजनिक हैंडपंप लगा है। इस पर कम से कम २० से २५ परिवार निर्भर हैं। यदि यह खराब हो गया तो फिर दूसरे गांव में लगे हैंडपंप के लिए जाना पड़ता है। ऐसे में मारपीट तक हो जाती है। पानी के लिए लोग एक-दूसरे पर चढ़ जाते हैं। फिर कैसी सोशल डिस्टेंसिंग।
कोरोना ने भी बढ़ा दी दूरी :- कोरोना संक्रमण की वजह से लोग एक दूसरे के गांवों में जाने से बच रहे हैं। बुंदेलखंड के शहर हो या गांव लोग पानी और कोरोना वायरस के बीच जूझ रहे हैं। लॉकडाउन से पहले लोग एक दूसरे के मोहल्ले के जाकर पानी भर ले रहे थे। लेकिन अब संक्रमण के डर से लोग दूसरे मुहल्ले को लोगों को अपने मुहल्ले में आने नहीं देना चाह रहे। इसलिए तमाम गांवों में लोग जैसे-तैसे काम चला रहे हैं।
पीने का पानी अलग-अन्य कार्यों के लिए अलग :- बुंदेलखंड क्षेत्र की एक और समस्या है। यहां के हर हैंडपंप का पानी पीने लायक हो ऐसा नहीं। ९० प्रतिशत कुएं या फिर हैंडपंप का पानी खारा है। इसलिए कुछ जल स्रोतों से हाथ तो धो सकते हैं, लेकिन उसे पीने के रूप में या फिर खाना पकाने में इस्तेमाल नहीं कर सकते। इसलिए कई गांवों में पीने के पानी की व्यवस्था करने में सोशल डिस्टेंसिग का पालन नहीं हो पा रहा।
शहरों में टैंकर से सप्लाई, गांवों में वह भी नहीं :- बुंदेलखंड के शहरी इलाकों में तो टैंकर से पानी की सप्लाई हो रही है लेकिन गांवों में तो घरों से दूर जाकर ही पानी लाने की मजबूरी है। ऐसे में जब पानी इतनी किल्लत के बाद मिल रहा है तो तो लोग उस पानी से बार-बार हाथ धोने का काम कैसे कर सकते हैं। बुंदेलखंड के 75 फीसदी परिवारों में हाथ धोना एक आदत है के नियम का पालन करवाना दूर की कौड़ी है। हालत यह है कि यहां तो कई लोग दो-दो दिन में एक बार नहाते हैं। सबसे बड़ा संकट यह है कि बुंदेलखंड इलाक़े में भी बड़ी संख्या में लोग वापस आए हैं। ऐसे में अब पानी की खपत पर भी असर पड़ा है। यानी अब पानी का भी बंटवारा हो गया है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो