इनमें से कुछ कैदियों पर आजादी-समर्थक प्रदर्शनकारी होने का आरोप लगा है या ‘संभावित पत्थरबाज’ करार दिया गया है। उनके खिलाफ उनके राज्य में पुलिस मामले का कोई पुराना रिकॉर्ड नहीं है और इसलिए उन्हें आदतन परेशान करने वाला आरोपी नहीं माना जाना चाहिए।
285 कैदियों को लाया गया था कश्मीर 6 अगस्त को जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद कुल 285 कैदियों को कश्मीर से आगरा, लखनऊ, वाराणसी, नैनी (इलाहाबाद), बरेली और अंबेडकरनगर की जेलों में ले जाया गया था।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामलों की सुनवाई अधिकारी ने कहा कि मौजूदा समय में, जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट की ओर से गठित एक सलाहकार बोर्ड उनके मामलों की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए कर रहा है। पिछले दो हफ्तों में कश्मीर के कुछ मुट्ठीभर लोगों को जेल में बंद अपने रिश्तेदारों से मिलने की इजाजत दी गई है। अधिकारियों के मुताबिक, वे बहुत से रिश्तेदारों को कश्मीरी कैदियों से मिलने की इजाजत नहीं दे सकते थे, क्योंकि ‘उनके सर्टिफिकेट्स को वेरिफाई करने में बहुत ज्यादा समय लगता है’। वहीं घाटी में कम्युनिकेशन लॉकडाउन की वजह से कैदी कश्मीर में रह रहे अपने परिवार वालों से संपर्क भी नहीं कर पा रहे हैं।
पिछले दो हफ्तों में कश्मीर के कुछ मुट्ठीभर आगंतुकों को जेल में बंद अपने रिश्तेदारों से मिलने की अनुमति दी गई है। अधिकारियों के अनुसार, वे बहुत से रिश्तेदारों को कश्मीरी कैदियों से मिलने की इजाजत नहीं दे सकते थे, क्योंकि ‘उनके प्रमाणपत्रों को सत्यापित करने में बहुत अधिक समय लगता है।
गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद जम्मू एवं कश्मीर से बड़ी संख्या में कैदियों को उत्तर प्रदेश के जिला जेल में स्थानांतरित किया गया था। इन कैदियों को आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के मामलों में गिरफ्तार किया गया था। खास बात यह थी कि इन सभी इन सभी कैदियों को अलग-अलग बैरकों में रखा गया है।