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लखनऊ

हाईकोर्ट का फैसला, अब और ताकतवर हुईं मुस्लिम महिलाएं

High court decision for Muslim women’s: वर्ष 2008 में दाखिल इस याचिका में प्रतापगढ़ की एक सत्र अदालत के 11 अप्रैल 2008 के आदेश को चुनौती दी गई थी। सत्र न्यायालय ने निचली अदालत के 23 जनवरी 2007 को पारित आदेश को पलटते हुए कहा था कि मुस्लिम विमेन एक्ट 1986 के आने के बाद याची व उसके पति का मामला इसी अधिनियम के अधीन होगा। सत्र न्यायालय ने कहा था कि उक्त अधिनियम की धारा 3 व 4 के तहत ही मुस्लिम तलाकशुदा महिलाएं गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी हैं। ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लागू नहीं होती।

लखनऊApr 19, 2022 / 09:16 am

Prashant Mishra

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High court decision for Muslim women’s: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मुस्लिम महिलाओं के हक में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। मुस्लिम तलाकशुदा महिलाएं जब तक दूसरी शादी नहीं करती तब तक उन्हें गुजारा भत्ता पाने का अधिकार रहेगा। इसके लिए महिलाएं कोर्ट में दावा दाखिल कर सकती हैं। न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार ने अहम नजीर वाला या फैसला एक मुस्लिम महिला की ओर द्वारा दाखिल आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिया है।
आदेश की दी गई थी चुनौती

वर्ष 2008 में दाखिल इस याचिका में प्रतापगढ़ की एक सत्र अदालत के 11 अप्रैल 2008 के आदेश को चुनौती दी गई थी। सत्र न्यायालय ने निचली अदालत के 23 जनवरी 2007 को पारित आदेश को पलटते हुए कहा था कि मुस्लिम विमेन एक्ट 1986 के आने के बाद याची व उसके पति का मामला इसी अधिनियम के अधीन होगा। सत्र न्यायालय ने कहा था कि उक्त अधिनियम की धारा 3 व 4 के तहत ही मुस्लिम तलाकशुदा महिलाएं गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी हैं। ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लागू नहीं होती।
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कोर्ट ने कहा कि

हाई कोर्ट में सत्र अदालत के इस फैसले को रद्द करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा शबाना बानो मामले में 2009 में दिए गए निर्णय के बाद यह तय हो चुका है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत इद्दत की अवधि के पश्चात भी गुजारा भत्ता पाने की अधिकारी हैं। जब तक वह दूसरी शादी नहीं कर लेती। कोर्ट ने इस फैसले के साथ याचिका को मंजूर कर लिया है।
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