कमेटी के अध्यक्ष ने बतायाकि यह ख़ुशी का पर्व हैं लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने उपस्थित संगतों एवं समस्त नगरवासियों को लोहड़ी के त्यौहार की बधाई देते हुए कहा कि लोहड़ी एक सामाजिक पर्व है लोग बेटे की शादी की पहली लोहड़ी या बच्चे के जन्म की पहली लोहड़ी बड़ी खुशी एवं उल्लास के साथ मनाते हैं आज के युग में हमें लड़की पैदा होने की पहली लोहड़ी को बड़ी खुशियों के साथ मनाना चाहिए।
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता दीवान की समाप्ति के उपरान्त रात्रि 8.30 बजे गुरुद्वारा भवन के समक्ष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह त्यौहार मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या पर मनाया जाता है। लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) के शब्दों से बना है जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस पर्व पर लकडि़यों को इकट्ठा कर आग जलाई जाती है और अग्नि के चारो तरफ चक्कर लगाकर अपने जीवन को खुशियों और सुख शान्ति से व्यतीत होने की कामना करते हैं और उसमे रेवड़ी, मूंगफली खील, मक्की के दानों की आहूति देते हैं और नाचते गाते हैं जिस घर में नई शादी हुई होती है या बच्चा पैदा होता है वह इस त्यौहार को विशेष तौर पर मनाते हैं।
लोहड़ी की यह प्रथा बहुत ही पुरानी कहा जाता है कि लोहड़ी की रात बहुत ठंडी और लम्बी होती है। लोहड़ी के बाद रात छोटी और दिन बड़ा हो जाता है। गाथा है कि बादशाह अकबर के समय दुल्ला भट्ठी नाम का डाकू था पर वह दिल का बड़ा नेक था वह अमीरों को लूटकर गरीबों मे बांट देता था। वह अमीरों द्वारा जबरदस्ती से गुलाम बनाई गई लड़कियों को उनसे छुड़वा कर उन लड़कियों की शादी करवा देता था और दहेज भी अपने पास से देता था वह दुल्ला भट्ठी वाला के नाम से प्रसिद्ध हो गया। तभी से लोहड़ी की रात लोग आग जला कर और रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर नाचते गाते हैं और उसका गुणगान करते हैं पंजाब के प्रसिद्ध लोक गीत-‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन बेचारा हो, दुल्ला भट्ठी वाला हो‘ गाकर इस पर्व को मनाते हैं। समाप्ति के उपरान्त मक्के के दानेे ,रेवड़ी, चिड़वड़े, तिल के लडडू का प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया गया।