पहला चुनाव ऐसा भी है जिसमें नहीं दिख रहा शोर- शराबा
आजादी के बाद शायद यह पहला चुनाव है जिसमें न नारे हैं, न बिल्लों की मारामारी है, न गलियों में शोर मचाती रिक्शों की कतारें हैं, न लाउडस्पीकरों का कान फोड़ू शोर गुल है, और न घर-घर दबिश जनसम्पर्क गश्त जैसे सभी ड्रामे अर्थहीन हो चुके हैं। इसके पीछे दो ठोस कारण साफ नजर आते हैं। पहला है संचार क्रांति, विशेष कर मोबाइलों के दौर में वोटर वाकयदा प्रशिक्षित हो चुका है। उसे राजनीति की पूरी जानकारी है और किसे वोट नहीं देना है।
सपा ने मौके पर काटा टिकट
भाजपा प्रत्याशी अरुण कुमार सागर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करके मैदान में हैं, जबकि गठबंधन प्रत्याशी भी पीडीए का गुणा भाग लगाकर चुनावी समीकरण को पलटने की कोशिश कर रही हैं। गठबंधन प्रत्याशी ज्योत्सना कश्यप एलएलएम की पढ़ाई कर चुकी हैं और आगे भी वह पढ़ ही रही हैं। उनके सामने सबसे बड़ी समस्या बाहरी होने की है। दूसरी बात, समाजवादी पार्टी से पहले से जो तैयारी कर रहे राजेश कश्यप का जाति प्रमाण पत्र को लेकर सपा ने मुख्य समय पर टिकट काटकर ज्योत्सना कश्यप को चुनाव मैदान में उतारा। इसलिए उन्हें समय भी कम मिला।
लोकसभा चुनाव में कांटे की टक्कर
हालांकि समाजवादी पार्टी का मजबूत संगठन आप पार्टी और कांग्रेस के नेता भी ज्योत्सना को पूरी शिद्दत से चुनाव लड़ा रही हैं, वहीं भाजपा प्रत्याशी अरुण सागर के लिए वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना, कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद, और विधायक वीर विक्रम प्रिंस, चेतराम, सलोना कुशवाहा, हरिप्रकाश वर्मा भी दिन-रात पसीना बहा रहे हैं। अरुण सागर के पीछे भाजपा का मजबूत संगठन और मुख्यमंत्री योगी और मोदी समर्थक मतदाता भी खड़ा है।
ददरौल विधानसभा उपचुनाव में भी सपा प्रत्याशी अवधेश कुमार वर्मा और भाजपा प्रत्याशी अरविन्द कुमार सिंह में कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है। अलबत्ता, लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में ग्रामीण अंचलों में आवारा पशुओं का मुद्दा सत्ता पक्ष को परेशान कर रहा है।