, पानी की बोतल, खाने का कुछ सामान, जेबों में कुछ पैसे लेकर गाजियाबाद होते हुए एक नहीं परिवारों का हुजूम निकल पड़ा। किसी को महोबा जाना था, कोई उन्नाव, कानपुर, औरैया, जालौन की डगर पकड़े था प्रदेश के अन्य सीमाओं पर भी यहीं हाल है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर काम कर रहे मजदूरों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पैदल राह पकड़ी। सब कुछ एक जैसा है। कुछ ऐसे लोग है जिनके बारे में हम बताते हैं उनके हौसले के बारे में, जो इन सभी बाधाओं को पार कर अपने गांव पहुंचें।
गुडगांव से पैदल महोबा पहुंची गर्भवती महिला:- एक 7 माह की गर्भवती महिला अपने पति और मासूम बच्चे के साथ छह सौ किलोमीटर पैदल चल कर हरियाणा के गुड़गांव से महोबा पहुंची है। इस सफर में उसको पांच दिन लगे। बिना खाए पिए सफर करना पड़ा। इस गर्भवती महिला की हिम्मत और हौसला देख लोगों के मुंह से उफ्फ निकल आया पर लोग दाद देने से भी नहीं चूके।
महोबा ज़िले के नजदीक मध्य प्रदेश के बारीगढ़ की रहने वाली यसोदा देवी नाम की यह महिला हरियाणा के गुड़गांव में पति के साथ मजदूरी करती है। इसका 5 साल का एक छोटा बेटा भी है। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाए लॉक डाउन से सभी यातायात के साधन बन्द हो गए। यशोदा के परिवार के सामने खाने पीने का संकट खड़ा हो गया। 8 माह की गर्भवती यशोदा देवी पति और बच्चे के साथ पैदल ही अपने घर महोबा ज़िले के लिए चल दी। पांच दिनों तक रात दिन पैदल चलते हुए यशोदा देवी, पति और बच्चे सहित सोमवार को महोबा पहुंची है। गर्भवती यशोदा देवी की हिम्मत और बहादुरी को देख कर हर कोई वाह-वाह कर रहा है।
अपना दर्द किससे बयां करें :- चेहरे पर थकान पैरों में छाले, बच्चे को कंधे पर बैठाकर घर पहुंचने के लिए पैदल निकले ये दिहाड़ी मजदूर अपना दर्द किससे बयां करें। इस वक्त घर पहुंचना सबसे बड़ी सफलता है। आगरा-कानपुर नेशनल हाईवे से पैदल निकलने वाले औरैया जिले के दिबियापुर जा रहे राजू, इंदर, वर्षा ने बताया कि वह दिल्ली में सिलाई फैक्ट्री में काम करते हैं। लाॅकडाउन होने से फंस गए। घर जाने को कोई वाहन नहीं मिला, इसलिए पैदल ही निकल पड़े। रात से भूखे हैं। किसी तरह वह इटावा तक आ सके हैं। मालिक ने मात्र एक हजार रुपया दिया था। बस चालक ने लेकर रास्ते में छोड़ दिया। अब तो मासूम बच्चा सहित खाने के भी लाले हैं। यह व्यथा किसी एक की नहीं हजारों मजदूरों की है। अधिकांश लोग उन्नाव, कानपुर, औरैया, जालौन जिलों में जा रहे थे।
मधु अपने बच्चों और पति के साथ दिल्ली में मजदूरी कर पेट पालने वाला यह परिवार लाॅकडाउन में घर के अंदर रहना चाहता है। चार दिन पहले अपने बच्चों को लेकर अपने गांव भैदपुर ऐरवाकटरा औरैया के लिए पैदल ही निकल पड़ीं। रास्ते में एक जगह भोजन की व्यवस्था हो गई है। जिससे कुछ हिम्मत मिली। रजिस्टर्ड मजदूर नहीं होने की वजह से सरकार से मिलने वाली आर्थिक मदद मिल पाना लगभग नामुमकिन है। इटावा जिला प्रशासन ने कई लोगों को औरैया तक छोड़ने का काम किया।
बापू चल घर आने वाला:- लॉक डाउन के चलते दुकानें बंद हैं। शहर से गांव तक सन्नाटा पसरा है। बार्डर सील हैं। गाजियाबाद जैसा हाल पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी है। जहां से किसी को बिहार, किसी को दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ अथवा पश्चिमी उत्तर प्रदेश़। जहां ये मजदूर काम कर रहे थे ठेकेदार गायब हो गया। मजदूरों का भुगतान नहीं हुआ है। जरूरी सामान खरीदने के लिए जेब में फूटी कौड़ी नहीं रही। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब 300 मजदूर पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर काम कर रहे थे अपने घरों के लिए पैदल ही चल पड़े। यही हाल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के 70, उड़ीसा के 30 व बिहार के रहने वाले 100 से अधिक भट्ठा मजदूरों का रहा। महराजगंज, गोरखपुर के दो दर्जन मजदूर जो जौनपुर के डोभी में रेलवे प्लेटफार्म का काम कर रहे थे वे भी अपनी मंजिल की तलाश में निकल चुके है। दिशा कोई भी हर मजदूर के सिर पर बड़ी गठरियां देखी जा सकती हैं। साथ में छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं है। सब सौ-सौ किमी की यात्रा कर पैदल जिला मुख्यालय आजमगढ़ पहुंच तो हालात की जानकरी हुई। अभी काफी लम्बा रास्ता है। आंखों में आंसू और चेहरे पर थकान साफ झलक रही है लेकिन बड़ों की हौसला आफजाई करते हुए बच्चे कह रहे हैं कि बापू चल घर आने वाला है।
सरकार ने इन मजदूरों को उनके गांव पहुंचाने में मदद के लिए एक हजार बसें चलाई पर अब बहुत से ऐसे है कि वो सड़क के जरिए पैदल जा रहे हैं या एक दो दिन में घर पहुंचेंगे। पर इन मजूदरों को घर पहुंचने से पहले 14 दिन तक क्वारंटाइन होना पड़ेगा।