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गेस्ट हाउस कांड के बाद कल फिर साथ-साथ होंगे माया और मुलायम, सपा-बसपा में खुशी की लहर

locationलखनऊPublished: Apr 18, 2019 03:03:22 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

-सपा-बसपा के लिए ऐतिहासिक होगा सपा संरक्षक का मंच शेयर करना-सबके जेहन में एक ही सवाल, जब होगा आमना-सामना क्या बोलेंगे दोनों नेता-गेस्ट हाउस कांड के बाद एक दूसरे की दुश्मन बन गयी थीं दोनों पार्टियां-दलित और ओबीसी वोट की गोलबंदी के लिए लिए दोनों दलों ने किया गठबंधन

Mayawati and Mulayam Singh Yadav

गेस्ट हाउस कांड के बाद कल फिर आमने-सामने होंगे माया और मुलायम

पत्रिका इन्डेप्थ स्टोरी
लखनऊ. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन भाजपा के लिए मुसीबत बन गया है। ढाई दशक बाद शुक्रवार को एक बार फिर दोनों दलों के प्रमुख नेता एक साथ मंच शेयर करेंगे। मौका होगा मैनपुरी में सपा उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव के लिए चुनावी रैली का। सभी के लिए यह कौतुहल का विषय है कि जब लंबे अर्से बाद दोनों नेता एक साथ होंगे तब इनमें क्या बातें होंगी। क्या भाव भंगिमा होगी। माया और मुलायम के साथ मंच पर तीसरा शख्स भी होगा। वह हैं रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह। यह राजनीति की खूबी है या मजबूरी सियासत के तीन दुश्मन अब एकजुट हैं।
ढाई दशक पहले 1995 में लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हुआ था। तब सपा और बसपा के बीच दूरियां बढ़ गयीं थीं। उप्र की विधानसभा और देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में इसके बाद कई मौके आए जब मायावती और मुलायम सिंह का आमना-सामना हुआ लेकिन दोनों ही नेता कन्नी काटकर निकल जाते रहे। ढाई दशक में इन दोनों में कोई बात भी नहीं हुई। इसीलिए सबके मन में यही गूंज रहा है कि आखिर जब दोनों नेताओं का आमना-सामना होगा तब प्रतिक्रिया क्या होगी।
भाजपा से निपटने की चुनौती
सपा-बसपा की मित्रता की नींव 90 के दशक में रखी गई थी। उस वक्त कांशीराम जिंदा थे। तब भी भाजपा से निपटने की चुनौती थी दोनों दलों के लिए और आज भी जब भाजपा ने इन दोनों दलों के लिए मुश्किलें खड़ीं की हैं तब नब्बे के दशक के चुनावी नारे -मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्रीराम की तर्ज पर आज माया और अखिलेश के लिए नारे गूंज रहे हैं। उस दौर में मुलायम और कांशीराम संयुक्त चुनावी रैलियां कर रहे थे। एक साथ चुनावी रणनीति बना रहे थे। आज भी कमोबेश यही हालत है।
1995 में दोनों दल थे साथ
1995 में सपा-बसपा ने यूपी विधानसभा की क्रमश: 256 और 164 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। सपा तब 109 सीट जीतने में कामयाब रही जबकि 67 सीटों पर बसपा को सफलता मिली थी। लेकिन, 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों पार्टियां अलग हो गईं। इससे सपा-बसपा में इतनी तल्खियां बढ़ गयी थीं कि दोनों ही दल एक दूसरे को अपना कट्टर प्रतिद्धंदी मानने लगे थे। इस कांड के बाद मुलायम और मायावती में कोई संवाद तो दूर, यह दोनों नेता कभी एक दूसरे के सामने भी नहीं पड़े। लेकिन अब राजनीतिक मजबूरी है कि दोनों दलों के नेता मंच साझा करने को तैयार हैं।
तकरार में बाद फिर एक साथ
2007 में जहां बहुजन समाज पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल कर अपनी सरकार बनाई, तो 2012 में सपा ने। 2014 में मोदी लहर ने सपा व बसपा दोनों को काफी कमजोर कर दिया। भाजपा ने 2017 विधान सभा चुनाव में दोनों पार्टियों को और तगड़ा झटका दिया। अब सपा-बसपा एक बार फिर साथ हैं।
मुलायम को लेकर संशय
माया और अखिलेश की संयुक्त रैली में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव आएंगे या नहीं अभी तक यह संशय बना हुआ है। क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने मायावती के साथ मंच को साझा करने के संबंध में अभी तक कोई सहमति नहीं दी है। इससे संशय है कि इस रैली में वह पहुंचेगें भी या नहीं। इसके पहले बसपा के साथ सपा के गठबंधन पर मुलायम विरोध जता चुके हैं। लेकिन चुनाव शुरू हो चुके हैं और उम्मीद है कि इस नए तरह की राजनीति में वह मायावती के साथ मंच पर दिखेंगे।
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