सपा-बसपा की मित्रता की नींव 90 के दशक में रखी गई थी। उस वक्त कांशीराम जिंदा थे। तब भी भाजपा से निपटने की चुनौती थी दोनों दलों के लिए और आज भी जब भाजपा ने इन दोनों दलों के लिए मुश्किलें खड़ीं की हैं तब नब्बे के दशक के चुनावी नारे -मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्रीराम की तर्ज पर आज माया और अखिलेश के लिए नारे गूंज रहे हैं। उस दौर में मुलायम और कांशीराम संयुक्त चुनावी रैलियां कर रहे थे। एक साथ चुनावी रणनीति बना रहे थे। आज भी कमोबेश यही हालत है।
1995 में सपा-बसपा ने यूपी विधानसभा की क्रमश: 256 और 164 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। सपा तब 109 सीट जीतने में कामयाब रही जबकि 67 सीटों पर बसपा को सफलता मिली थी। लेकिन, 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों पार्टियां अलग हो गईं। इससे सपा-बसपा में इतनी तल्खियां बढ़ गयी थीं कि दोनों ही दल एक दूसरे को अपना कट्टर प्रतिद्धंदी मानने लगे थे। इस कांड के बाद मुलायम और मायावती में कोई संवाद तो दूर, यह दोनों नेता कभी एक दूसरे के सामने भी नहीं पड़े। लेकिन अब राजनीतिक मजबूरी है कि दोनों दलों के नेता मंच साझा करने को तैयार हैं।
2007 में जहां बहुजन समाज पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल कर अपनी सरकार बनाई, तो 2012 में सपा ने। 2014 में मोदी लहर ने सपा व बसपा दोनों को काफी कमजोर कर दिया। भाजपा ने 2017 विधान सभा चुनाव में दोनों पार्टियों को और तगड़ा झटका दिया। अब सपा-बसपा एक बार फिर साथ हैं।
माया और अखिलेश की संयुक्त रैली में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव आएंगे या नहीं अभी तक यह संशय बना हुआ है। क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने मायावती के साथ मंच को साझा करने के संबंध में अभी तक कोई सहमति नहीं दी है। इससे संशय है कि इस रैली में वह पहुंचेगें भी या नहीं। इसके पहले बसपा के साथ सपा के गठबंधन पर मुलायम विरोध जता चुके हैं। लेकिन चुनाव शुरू हो चुके हैं और उम्मीद है कि इस नए तरह की राजनीति में वह मायावती के साथ मंच पर दिखेंगे।