मायावती ने बैठक के दौरान कहा कि गठबंधन का वोट चुनावों में ट्रांसफर नहीं हुआ। लिहाजा आगामी उपचुनाव में बसपा अकेले दम पर लड़ेगी। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में 11 प्रत्याशी जीत कर संसद पहुंचे। खाली हुई सीटों पर छह माह के भीतर उपचुनाव होने हैं। 11 सीटों में से बसपा के एक और सपा के एक विधायक संसद पहुंचने में कामयाब रहे। जलालपुर से बसपा विधायक रितेश पांडेय अम्बेडकरनगर से चुने गए हैं और रामपुर से सपा के आजम खान सांसद बने हैं।
बता दें कि गठबंधन ने यूपी में 50 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणाम इसके उलट ही रहे। बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें ही नसीब हुईं। वहीं बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन ने 64 सीटों पर जीत दर्ज की।
उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारती बसपा उपचुनाव में अकेले बसपा का लड़ने का फैसला चौंकाने वाला है। ऐसा इसलिए क्योंकि आमतौर पर उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी नहीं उतारती। 2018 के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारे थे मगर सपा को समर्थन दिया था। इसी आधार पर गठबंधन से चुनाव में फायदा होते देख सपा और बसपा ने पुरानी बातें भूल एकजुट होने का मन बनाया। लेकिन परिणा मनमाफिक नहीं आए।
बैठक में उठा ईवीएम का मुद्दा दिल्ली में यूपी के सांसदों, विधायकों, पार्टी पदाधिकारियों, जोनल इंचार्जों और जिलाध्यक्षों के साथ गठबंधन के नतीजों पर समीक्षा की। बैठक के बाद आरएस कुशवाहा ने बताया कि बैठक में गठबंधन के साथ ही ईवीएम में गड़बड़ी का मुद्दा भी उठा। उन्होंने कहा कि बसपा की मांग है कि बैलट पेपर से चुनाव हो. कुशवाहा ने कहा कि बैठक में आगामी चुनावों को लेकर भी चर्चा हुई। श्रावस्ती से बसपा सांसद राम शिरोमणि वर्म ने ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ है। चुनाव बैलेट पेपर से होना चाहिए था। उन्होंने चुनाव को बैलेट पेपर से कराए जाने की मांग की।
38 सीटों पर उतारे थे प्रत्याशी गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी से गठबंधन के तहत बसपा ने 38 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। इसमें से 10 सीटें ही बसपा के खाते में आई। जबकि 37 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली सपा ने 5 सीटों पर ही जीत दर्ज की।