पश्चिम उत्तर प्रदेश में अच्छी पैठ रखने वाले संजीव वालियान का नाम यूं तो लम्बे समय से चर्चा में था। वह नाम इसलिए भी चर्चा में था क्योंकि केश्व प्रसाद मौर्य के पहले भाजपा के अध्यक्ष लक्ष्मी कांत बाजपेयी मेरठ के ही रहने वाले थे। बाजपेयी की जगह उसी क्षेत्र से भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने पर पार्टी सोच रही थी। पर ऐसा नहीं हुआ। दलित वर्ग से आने वाली भाजपा नेता प्रियंका रावत दलित कार्ड खेलकर भाजपा अध्यक्ष बनने का सपना देख रही थीं। उनके साथ अच्छी बात यह थी कि एक तो वे दलित वर्ग की थीं और दूसरी बात यह थी कि वे आधी दुनिया यानी कि महिला थीं। भाजपा एक तेज तर्रार महिला नेता की तलाश भी कर रही थी। ऐसे में प्रियंका रावत के नाम पर काफी बल मिल रहा था, लेकिन उन्हें भी मौका नहीं मिला। इनके अलावा प्रदेश के परिवहन मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह का नाम चर्चा में आया। वे पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस बार वे चुनाव भले ही न लड़े हों, पर उन्हें पार्टी पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में देखती है। उन्हें भी इस लड़ाई में बाहर कर दिया गया। दलित समुदाय के अशोक कटारिया और रमा शंकर कठेरिया का नाम भी चर्चा में था। अशोक कठारिया भाजपा के यूपी प्रभारी सुनील बंसल के नजदीक होने के कारण अपनी दावेदारी से इनकार नहीं कर रहे थे, वहीं आगरा के सांसद रमाशंकर कठेरिया लम्बे समय से भाजपा के साथ संघर्ष कर रहे हैं और ऐसा समझा जा रहा था कि भाजपा उनके नाम पर काफी गंभीर है। विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की करीब 85 आरक्षित सीटों में से बीजेपी ने 69 जीती हैं। यूपी में सियासी दलों के बीच में भी यही चर्चा थी कि पश्चिम के दतिल को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान दे सकती है। इससे भाजपा में दलित जुडऩे की संभावना और प्रबल मानी जा रही थी। पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के महेन्द्र पांडेय के नाम की घोषणा ने सभी अटकलों पर विराम लगा दिया।
सीएम के बाद पूर्वांचल से एक और चेहरा उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में इन दिनों पूर्वांचल के नेताओं का बोलबाला हैँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद गोरखपुर से हैं और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इलाहाबाद से हैं. इलाहाबाद से ही पार्टी ने दो नेताओं के मंत्री पद भी दिया है. ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय भी पूर्वांचल के चंदौली क्षेत्र से सांसद हैं. ऐसे में अब प्रदेश राजनीति में बीजेपी ने एक और पूर्वांचली को अहम पद दे दिया है. कहा जा रहा है कि अमित शाह अब सभी वर्गों को खुश रखने की नीति अपनाए हुए हैं। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन में गजब की सोशल इंजीनियरिंग लागू की थी। पिछड़े वर्ग को साधने के लिए केशव मौर्य को दिग्गजों पर तरजीह देते हुए प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, जिसका पार्टी को खूब फायदा मिला। सरकार बनी तो योगी आदित्यनाथ सीएम बने. इसके अलावा ब्राह्मण वर्ग से दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम बने तो केशव मौर्य को उनके बराबर की कुर्सी देकर ओबीसी वोटरों को अहमियत देने का संदेश दिया गया। इसके बाद अब ब्राह्मणों को खुश करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष पद पर डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय को चुना गया है. अब देखते हैं कि आगे इसका क्या असर होगा।