ला में तेरी गीता पढ़ लूँ, तू पड़ ले मेरा क़ुरान।”
किसी शायर का ये शेर आपसी सौहार्द को बढ़ावा दे रहा है। ऐसी ही आपसी एकता की मिसाल देखने को मिली है बुन्देलखण्ड के महोबा जनपद में, जहाँ एक मुस्लिम परिवार जाति धर्म के बंधनों से परे दो प्रेम करने वाले हिन्दू जोड़े की खुशी में न केवल शरीक हुआ बल्कि उनका विवाह भी कराया। दरअसल पूरा मामला श्रीनगर थाना क्षेत्र के सिजहरी गाँव का है। जहां तेजप्रताप राजपूत और आकांक्षा राजपूत को प्यार हो गया। दोनों एक-दूसरे को बेइंतहा मोहब्बत करते थे, लेकिन लड़की का पिता गाँव में ही शादी करने के खिलाफ था, लेकिन दोनों ही एक-दूसरे को दिल से अपना जीवन साथी मान चुके थे। मगर लड़की के परिवार की बंदिशें और समाज की पाबंदियां उन्हें एक होने से रोक रही थीं। यही नहीं लड़की के पिता बिहारीलाल ने कोतवाली में लड़के के खिलाफ छेडख़ानी और प्रताडि़त करने की तहरीर भी दी थी। मगर थाने में भी लड़की ने प्यार का साथ नहीं छोड़ा और अपने प्रेम के लिए परिवार को छोडऩे तक की बात कह डाली।
फिर क्या था पुलिस ने भी दोनों के बालिग होने का प्रमाण देखकर उन्हें छोड़ दिया। शादी के लिए राजी तेजप्रताप के पिता जाहर सिंह ने अपने मुस्लिम मित्र शमीम खान और उनकी पत्नी फरीदा बेगम से दोनों की शादी कराए जाने की बात की। न्यायालय में दोनों ने कोर्ट मैरिज तो कर लिया, लेकिन आकांक्षा के मन में ये टीस थी कि उसकी शादी में न उसका परिवार शामिल हुआ न शादी की खुशियां देख पाई। ऐसे में शमीम खान ने आगे बढ़कर आकांक्षा की छोटी चन्द्रिका मंदिर में हिन्दू रीति रिवाज से शादी कराई, यही नहीं एक बेटी का दर्द समझते हुए पिता का फर्ज भी अदा किया। शमीम और फरीदा ने आकांक्षा का कन्यादान किया। सिर में टोपी और जुबां में कलमा पढ़ रहे शमीम खान ने दुआ देकर हिन्दू बेटी को विदा किया। शमीम खान बताते हैं कि उनकी जि़ंदगी का ये सबसे खूबसूरत लम्हा है जब उन्होंने एक हिन्दू बेटी को खुशियों का तोहफा दिया है।
वहीं उनकी पत्नी फरीदा बताती हंै कि मजहबों में आपसी बैर करने वालों के मुंह में ये शादी एक तमाचा है। हमने एक बेटी का हक़ भी अदा किया है। एकता का फर्ज भी निभाया है। लाल जोड़े में सजी आकांक्षा बताती है कि उसकी शादी में उसके परिवार वाले शामिल नहीं हुए। वो मुस्लिम परिवार का प्यार पाकर खुश है, उसे अपने माँ-बाप की कमी महसूस नहीं हुई है। दूल्हा बना तेज प्रताप राजपूत अपने हमसफऱ को पाकर खुश है और खुशी इस बात की भी है कि उसकी शादी आपसी सौहार्द की मिसाल बन गयी है। दूल्हे का पिता जाहर सिंह अपने मुस्लिम दोस्त शमीम की इस मोहब्बत का शुक्रगुजार है। बहरहाल धर्मों को बांटकर सियासत करने वाले लोगों को शमीम और फरीदा ने करारा जबाब दिया है। आपसी सौहार्द की ये मिसाल असली हिंदुस्तान की इबारत को दर्शा रही है?