पवन ने बताया कि फांसी देने से पहले फांसीघर पहुंच कर ट्रायल करना होता है। इसमें लीवर आदि सब चेक किए जाते हैं, जिसे फांसी देनी होती है। उसके वजन के बराबर बोरे में रेत आदि भरकर फांसी के फंदे पर लटका कर जांच की जाती है। जिस रस्सी से फंदा बनाया जाता है, उसके भी सब कुछ जांचा-परखा जाता है। पवन कहते हैं कि जब फांसी दी जाती है तो दोषी के हाथ-पैर बांध दिए जाते हैं, उसके मुंह पर काला कपड़ा डाल दिया जाता है। इसके बाद जेलर के इशारे पर फांसी देने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। पवन को सरकार की ओर से पांच हजार रुपये महीना मिलता है। इसमें उसके परिवार का खर्च नहीं चलता। दिन में वह कहीं मेहनत-मजदूरी करता है या फिर कपड़ों की फेरी लगाकर उन्हें बेचता है।