के मुताबिक शहर की हवा किसी जहरीले धुंएं से कम नहीं थी। साथ ही एयर क्वालिटी लगातार 61 दिन ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ की श्रेणी में दर्ज की गयी। सबसे अधिक प्रदूषण नवंबर और दिसंबर महीने में दर्ज हुआ जबकि सबसे काम जुलाई में। मैन्युअल मॉनिटरिंग स्टेशन के 11 महीनो (जनवरी-नवंबर) के डाटा के अनुसार हजरतगंज को सबसे प्रदूषित पाया गया। इन स्थानों में अलीगंज , महानगर, सरायमाली, तालकटोरा, अंसल और गोमतीनगर आते हैं।
विश्लेषण में सामने आया है कि गत वर्ष 19% दिन को ही शहर की हवा संतोषजनक रही है। इसमें एक्यूआई 51 से 100 के बीच रहा जो कि संवेदनशील लोगों के लिए मामूली साँस लेने में असुविधा पैदा करने के लिए पर्याप्त था। शहर के विभिन्न स्थानों से दर्ज प्रदूषण स्तरों में नवंबर में सात दिन ऐसे थे जो देश भर में सबसे प्रदूषित रहे। इसके परिणाम साँस के मरीजों के साथ आमजन को भी उठाने पड़े थे।
लखनऊ में एयर क्वालिटी के वर्तमान ट्रेंड के बारे में बताते हुए सीड के सीईओ रमापति कुमार ने कहा कि ‘शहर में वायु प्रदूषण वाकई एक गंभीर समस्या है, जहां पीएम2.5 का अत्यधिक संकेंद्रण गंभीर संकट है। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि प्रदूषण कोई मौसमी या अल्पकालिक मामला नहीं है। पूरे साल यह गंभीरता से लेना चाहिए।
राजधानी की आबोहवा सुधारने के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने एक्शन प्लान बनाया है। इसके लिए कई विभागों की मदद से कार्य योजना तैयार की गई है। अगले 30 दिन में प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की ओर से हेल्पलाइन नंबर स्थापित करने की बात भी कही गई है। प्रदूषण से जुड़ी हुई कंप्लेंट भी जहां पर दर्ज कराई जाएगी कंप्लेन के निस्तारण की मॉनिटरिंग हेड ऑफिस से की जाएगी। नगर निगम और प्रदूषण विभाग मिलकर यह जिम्मेदारी भी निभाएंगे की प्रदूषण रोकने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कदमों को सोशल मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रिंट मीडिया के माध्यम से लोगों के बीच पहुंचाया जाए। मोबाइल एप बनाने के निर्देश भी दिए गए हैं। तैयार हुए प्रदूषण के खिलाफ एक्शन प्लान में ट्रैफिक विभाग, फारेस्ट डिपार्टमेंट, एलडीए नगर निगम के साथ कुछ अन्य विभागों की भूमिका भी तय की गई है। फारेस्ट डिपार्टमेंट को हरियाली बढ़ाने, नगर निगम को कूड़े और अन्य चीज़ों के जलाने, निर्माण सामग्री के रखरखाव के साथ उचित निस्तारण, प्रशासन को पटाखों का इस्तेमाल रोकने आदि ज़िम्मेदारी दी गई है।