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लखनऊ

Opinion: जिम्मेदारी के पद पर बैठे लोगों को अनर्गल बयानबाजी से बचना चाहिए

Opinion: लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri violence) की घटना ने सत्ताधारी पार्टी के नेताओं और पुलिस प्रशासन को सवालों के घेरे में ला दिया.

लखनऊOct 05, 2021 / 03:47 pm

Abhishek Gupta

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Lakhimpur Violence

Opinion- यूपी के लखीमपुर-खीरी में हुई हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) ने प्रदेश व देशभर में ठंडे पड़ रहे किसान आंदोलन (Famers protest) को फिर से मजबूती दे दी है। केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी (Ajay Mishra Teni) के पुत्र की गाड़ी से किसानों की कथित मौत के बाद भड़की हिंसा हालांकि, थम गयी है। लेकिन इस घटना ने विपक्ष को राजनीति का नया मसाला दे दिया है। सरकार ने मृत किसानों के परिवारीजनों को मुआवजा और एक सदस्य को सरकारी नौकरी का वादा कर स्थिति को संभाल लिया है। लेकिन, सवाल है कि आखिर यह चिंगारी भड़की कैसे? और उसके बाद जिस तरह से चार लोगों को मारा गया वह कैसी मानवता है। इसके लिए आखिर जिम्मेदार कौन है। सरकार ने मामले के लिए हाईकोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित करने की बात कही है। कमेटी अपना काम करेगी। लेकिन, इसके पहले जो लोग इस हिंसा को भड़काने के लिए प्राथमिक तौर पर जिम्मेदार थे उनकी पहचान होनी चाहिए।
कृषि कानून को लेकर किसानों के आंदोलन को अब काफी वक्त हो गया है। अब तक किसानों का विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्वक चल रहा था। लेकिन गांधी जयंती के अगले दिन जो प्रकरण हुआ, उसने किसान आंदोलन को रक्तरंजित करते हुए हिंसक रूप दे दिया। उत्तर प्रदेश में 2022 चुनाव होने हैं इसलिए राजनीतिक दलों ने इसे और तूल दिया। यह घटना न सिर्फ किसानों की बेसब्री, उनकी अनुशासनहीतना बल्कि सरकार की नाकामियों की भी पोल खोलती है।
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सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के अर्नगल बयान और पुलिस प्रशासन की भूमिका तो सवालों के घेरे में है ही। इन सवालों के बीच सोशल मीडिया पर दो वीडियो वायरल हो रहे हैं। एक वीडियो में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी भरी सभा में आंदोलन कर रहे किसानों के लिए “दो मिनट में ठीक कर दूंगा” जैसी बयानबाजी कर उन्हें चेतावनी देते दिख रहे हैं। तो दूसरे में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर अपने समर्थकों से आंदोलनकारी किसानों को ‘शठे शाठ्यम् समाचारेत’ (जैसे को तैसा) करने के लिए उकसाते हुए दिख रहे हैं। किसानों के साथ जो हुआ वह दुखद है। और किसानों ने जो किया वह घोर निंदनीय है, लेकिन जिम्मेदारी और उच्च पदों पर विराजमान दो बड़े नेताओं के वीडियो का जो सच है, वह बेहद गैर जिम्मेदाराना है। संवैधानिक, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने की पहली जिम्मेदारी जन प्रतिनिधियों और लोकसत्ता संभाल रहे नेताओं की है। लेकिन जब वही अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं तो क्या किया जाए। कुछ भी बोलने से पहले उन्हें अपने पद की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए। जिम्मेदार जब ऐसे बयान देंगे, तब स्थिति कैसे संभलेगी?
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किसानों को भी यह समझना होगा कि विरोध प्रदर्शन को हिंसा का रूप देने से नुकसान किसी और का नहीं बल्कि उन्हीं का होगा। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं। कानपुर के कारोबारी मौत मामले से घिरी यूपी पुलिस को भी संवेदनशील होकर प्रदेश में शांति बनाए रखने व लोगों में भरोसा कायम करने की जरूरत है। लखीमपुर-खीरी में हुई हिंसा के जो भी दोषी हों, उन्हें जल्द से जल्द सजा मिलनी चाहिए, ताकि घटना की पुनरावृत्ति न हो।
(अ.गु.)

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