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लखनऊ

पार्षद से मंत्री और राज्यपाल बनने तक का शानदार सियासी करियर रहा लालजी टंडन का, अटल बिहारी वाजपेयी के थे करीबी

मध्य प्रदेश के राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे लालजी टंडन (Lalji Tondon) का 21 जुलाई, 2020 को लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया। लालजी टंडन के निधन पर तमाम राजनीतिक हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है। लालजी टंडन भले ही अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन आज भी उन्हें सियासी दुनिया का सिकंदर माना जाता है

लखनऊJul 21, 2020 / 09:07 am

Karishma Lalwani

पार्षद से मंत्री और राज्यपाल तक का शानदार सियासी करियर रहा लालजी टंडन का

पार्षद से मंत्री और राज्यपाल तक का शानदार सियासी करियर रहा लालजी टंडन का

लखनऊ. मध्य प्रदेश के राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे लालजी टंडन (Lalji Tondon) का 21 जुलाई, 2020 को लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया। लालजी टंडन के निधन पर तमाम राजनीतिक हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है। लालजी टंडन भले ही अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन आज भी उन्हें सियासी दुनिया का सिकंदर माना जाता है। 12 अप्रैल, 1935 को लखनऊ में जन्मे लालजी टंडन ने अपने करियर की शुरुआत ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से की थी। उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई लखनऊ के ही कालीचरण इंटर कॉलेज से की और स्नातक लखनऊ यूनिवर्सिटी से किया।
इसके बाद 1958 में लालजी का कृष्णा टंडन के साथ विवाह हुआ। उनके बेटे गोपाल जी टंडन इस समय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री हैं। संघ से जुड़ने के दौरान ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उनकी मुलाकात हुई। लालजी शुरू से ही अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीब रहे।
लालजी टंडन खुद कहा करते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी का उनके जीवन पर काफी असर रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में उनके साथी, भाई और पिता तीनों की भूमिका अदा की है। अटल के साथ उनका करीब 5 दशकों का साथ रहा। यही वजह रही कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को लखनऊ में टंडन ने ही संभाला था और सांसद चुने गए थे।
राजनीतिक सफर

लालजी टंडन को भाजपा का संकटमोटक कहा जाता था। टंडन ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 में की थी। वे भाजपा में शामिल होने के बाद दो बार पार्षद चुने गए और दो बार विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवा दी। उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन में भी बढ़-चढकर हिस्सा लिया था। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा। 1978 से 1984 तक और 1990 से 1996 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। इस दौरान 1991-92 की उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार में मंत्री बने। 1997 में वह नगर विकास मंत्री रहे।
लालजी टंडन विपक्षी दलों में भी अपनी सियासी छवि के लिए जाने जाते थे। उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई अहम प्रयोगों के लिए भी जाना जाता है। 90 के दशक में प्रदेश में बीजेपी और बीएसपी की गठबंधन सरकार बनाने में भी उनका अहम योगदान माना जाता है। बसपा सुप्रीमो मायावती उन्हें अपने बड़े भाई की तरह मानती थीं और राखी भी बांधा करती थीं।
संभाली अटल की विरासत

2009 में अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीति से दूर होने के बाद लखनऊ लोकसभा सीट खाली हो गई थी। भाजपा ने इस सीट से लालजी टंडन को उम्मीदवार के रूप में उतारा। लोकसभा चुनाव में लालजी टंडन ने लखनऊ लोकसभा सीट से आसानी से जीत हासिल की और संसद पहुंचे। लालजी टंडन को साल 2018 में बिहार के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और फिर कुछ दिनों के बाद मध्यप्रेदश का राज्यपाल बनाया गया था।

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