अपने पति की शादी अपनी छोटी बहन से करा दी निर्धन दलित परिवार में जन्म लेने वाली सावित्री बाई फूले की महज आठ वर्ष की आयु में परिजनों ने उनकी शादी कर दी, लेकिन उनका गौना नहीं हुआ था। जब उन्होंने होश संभाला और प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत की तो उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को संन्यास के लिए समर्पित करते हुए अपने पति की शादी अपनी छोटी बहन से करा दी। वह अपने जीवन में हार मानने वाली महिला नहीं थीं उन्होंने बुलंद हौसलों, दृढ़ संकल्प के बल पर तीन बार लगातार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीता। लेकिन भाजपा में आने के बाद ही उनका सियासी कद बड़ा भाजपा में आने के बाद से ही उनका सियासी कद परवान चढ़ा।
भाजपा से 2017 में मोह भंग होने लगा
विधानसभा चुनाव 2012 में बलहा सुरक्षित विधानसभा सीट से 22 हजार से अधिक मतों से जीतीं। दो वर्ष बाद उन्हें 2014 में भाजपा ने बहराइच सुरक्षित संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाया। एक लाख से अधिक मतों से उन्हें फतह हासिल हुई। २०१३ में भाजपा आला कमान ने सावित्री बाई फुले को राष्ट्रीय महिला संवाद प्रभारी पद का गुरुत्तर दायित्व दिया। लेकिन उसी भाजपा से फुले का 2017 में मोह भंग होने लगा।
तीन साल तक स्कूल से भी निकाल दिया गया बहराइच जिले के रिसिया थाने के हुसैनपुर मृदंगी की रहने वाली सावित्री बाई फुले के जीवन में काफी उतार-चढ़ाव रहा है। जब वह आठवीं की परीक्षा पास की तो स्कूल के प्रधानाध्यापक ने उन्हें स्कालरशिप देने से मना कर दिया, जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उन्हें तीन साल तक स्कूल से भी निकाल दिया गया। यही नहीं प्रधानाध्यापक ने स्कालरशिप का पैसा तो नहीं दिया साथ ही अंक तालिका व प्रमाण पत्र भी नहीं दिए, जिससे वही तीन साल तक आगे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकीं। फुले के पिता बसपा से जुड़े हुए थे। अक्षयवरनाथ कनौजिया की सावित्री के पिता से गहरी मित्रता थी। जब उन्हें पता लगा कि सावित्री को अंकतालिका व प्रमाण पत्र नहीं मिले हैं, तो उसे लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती से मिले। जिस पर सावित्री को तत्काल उसी दिन परिवार वालों को अंकतालिका व प्रमाण पत्र तो मिला ही, मुख्यमंत्री के निर्देश पर उसे नानपारा के कालेज में आगे की शिक्षा को प्रवेश मिल गया।
दलितों की पीड़ा की आवाज बुलंद करना शुरू किया
इस घटना ने सावित्री बाई फुले को काफी उद्वेलित किया और उसने आजीवन संन्यास का व्रत लेते हुए महिलाओं, शोषितों, पीडि़तों की लड़ाई का संकल्प लेते हुए स्नातक की शिक्षा पूरी कर राजनीति में कदम रखा। वह 2001 से 07 तक तीन बार निरंतर विभिन्न वार्डों से जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं। सावित्री ने महिलाओं के संघर्ष के लिए भारतीय महिला सखी उत्थान समिति बनाई। उन्होंने नमो: बुद्धाय जनसेवा समिति के माध्यम से दलितों की पीड़ा की आवाज बुलंद करना शुरू किया। उन्होंने दलित हित, आरक्षण के समर्थन में कार्यक्रम कर अलग पहचान बनाने की राह पकड़ ली है।