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लखनऊ

यूपी में मूर्तियों को लेकर तेज हुई सियासी जंग, भाजपा के साथ विपक्षी पार्टियों ने भी ढूंढ़ लिये अपने ‘राम’

– योगी सरकार अयोध्या के भगवान राम का सहारा
– सपा ने लिया कृष्ण और परशुराम की मूर्ति का सहारा
– बसपा के साथ कांग्रेस भी सियासी मैदान में उतरी

लखनऊAug 14, 2020 / 03:01 pm

नितिन श्रीवास्तव

यूपी में मूर्तियों को लेकर जंग तेज, भाजपा के साथ विपक्षी पार्टियों ने भी ढूंढ़े अपने 'राम'

यूपी में मूर्तियों को लेकर जंग तेज, भाजपा के साथ विपक्षी पार्टियों ने भी ढूंढ़े अपने ‘राम’

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में इन दिनों मूर्तियों को लेकर जंग जारी है। अगर कहें कि विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों ने तैयारी शुरू कर दी है, तो यह भी गलत नहीं होगा। अयोध्या में राम मंदिर की नींव पड़ने के बाद से बाकी राजनीतिक पार्टियों की ओर से ब्राह्मणों को रिझाने को लेकर कोशिशें हो रही हैं। राम से लेकर परशुराम तक तमाम नेता बयान दे रहे हैं। इस बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कृष्ण की मूर्ति का सहारा लिया है। राम पर जारी सियासत के बीच अखिलेश श्रीकृष्ण की मूर्ति के साथ नजर आए। तो वहीं राम और कृष्ण के साथ ही परशुराम लहर भी चल पड़ी। समाजवादी पार्टी परशुराम की 108 फीट ऊंची मूर्ति लगाना चाहती है तो मायावती समाजवादियों से दो कदम आगे और भव्य मूर्ति बनवाना चाहती हैं। सीएम योगी पहले ही अयोध्या में श्रीराम की विशाल प्रतिमा लगाने की बात कह चुके हैं। कुल मिलाकर सारी राजनीतिक पार्टियों के बीच मूर्तियों को लेकर सियासी घमासान जोरों पर है, जो आगामी विधानसभा चुनाव तक चलने की उम्मीद है।
खत्म नहीं हुई मूर्ति पर राजनीति

राम मंदिर भूमिपूजन के साथ लग रहा था कि अब उत्तर प्रदेश में मंदिर या मूर्ति को लेकर राजनीति खत्म हो गई है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैसे इस बार भी राजनीति के केंद्र में राम हैं लेकिन जय सिया राम वाले नहीं बल्कि ब्राह्मण समाज की आस्था के प्रतीक माने जाने वाले परशुराम हैं। एक तरफ समाजवादी पार्टी परशुराम की 108 फीट ऊंची मूर्ति लगाना चाहती है। तो अखिलेश की ये बात उनकी विरोधी बीएसपी चीफ मायावती को पसंद नहीं आई। मायावती समाजवादियों से दो कदम आगे और भी भव्य मूर्ति बनवाना चाहती हैं। तो वहीं कांग्रेस भी इसी होड़ में शामिल दिख रही है। कांग्रेस ने परशुराम जयंती पर सरकारी छुट्टी घोषित करने की मांग उठाई है।
निशाने पर ब्राह्मण मतदाता

दरअसल, उत्तर प्रदेश में क़रीब 12 फ़ीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं और यही वजह है कि हर पार्टी इस वर्ग को अपनी ओर खींचने की कोशिश में है। जब राम मंदिर भूमिपूजन के मौके पर करीब-करीब सभी राजनीतिक पार्टियां राम का जयकारा लगा रही थी, उस वक्त समाजवादी पार्टी राम के साथ-साथ परशुराम को भी सियासत का केंद्र बना दिया। अखिलेश यादव ने परशुराम की 108 फीट ऊंची मूर्ति लगाने की बात कही। अखिलेश की ये बात उनकी विरोधी बीएसपी चीफ मायावती को पसंद नहीं आई और उन्होंने कहा कि बसपा सरकार बनने पर ब्राह्मण समाज की मांग को देखते हुए श्री परशुराम की मूर्ति हर मामले में समाजवादी पार्टी से बड़ी और भव्य लगाई जाएगी।
2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में हर कोई अपने-अपने सियासी राम को ढूंढ़ने में लगा है। बीजेपी राम मंदिर के सहारे आगे बढ़ रही है, ऐसे में बाकी पार्टियों ने भी अपना-अपना राम ढूंढ़कर चुनावी मैदान में उतरने का मन बना लिया है। जिससे दलित, ओबीसी और मुसलमानों के साथ ब्राह्मण वोटों को भी अपने पक्ष में खींचा जा सके।
अपनी मूर्तियों पर घिरी मायावती

वहीं इस बीच लखनऊ में बसपा शासन काल में बनाए गए बहुजन प्रेरणा केंद्र पर बसपा सुप्रीमो मायावती की मूर्ति लगाए जाने का मामला तूल पकड़ने लगा है। विपक्षी पार्टियों मायावती पर तंज कस रही हैं। मूर्तियों पर चल रहे काम के वीडियो सुर्खियों में छाए हैं। इस बीच पूरे मामले में बसपा सुप्रीमो मायावती ने ताबड़तोड़ तीन ट्वीट करके सफाई दी है। मायावती ने कहा है कि लखनऊ प्रेरणा केंद्र पर किसी तरह की कोई नई मूर्ति नहीं लगाई जा रही है बल्कि मूर्तियों का रख-रखाव बेहतर हो सके इसलिए रिनोवेशन का काम चल रहा है।

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