रावण को क्यों किया गया था गिरफ्तार पुलिस ने रावण को हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उसके खिलाफ 21 मुकदमे दर्ज हुए थे। गिरफ्तारी के बाद जब रावण जमानत पर रिहा होने वाला था, उसी दौरान उसके खिलाफ रासुका की कार्रवाई हो गई। शासन ने चार बार उसकी रासुका अवधि बढ़ाई। लेकिन ऐन लोकसभा चुनाव से पहले योगी सरकार ने दलितों को साधने के लिए बड़ा दांव खेलते हुए सहारनपुर हिंसा के आरोपित भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर उर्फ रावण से रासुका हटाने और उसे समय से पहले ही रिहा करने का फैसला किया है। प्रमुख सचिव गृह के अनुसार, रावण की रिहाई शुक्रवार को हो जाएगी। उसके अलावा पांच अन्य पर भी रासुका लगा था। इनमें से दलितों पर हिंसा के तीन आरोपितों सोनू उर्फ सोनपाल, सुधीर और विलास उर्फ राजू को छह व सात सितंबर को रिहा किया जा चुका है। जबकि दलित पक्ष के दो अन्य आरोपितों सोनू और शिव कुमार से भी रासुका हटाने का फैसला हुआ है।
भाजपा सरकार को ऐसा क्यों करना पड़ा भाजपा सरकार पर दलितों उत्पीडऩ के लगातार आरोप लगते रहते हैं। एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुए भारत बंद में दलितों पर मुकदमे लगाए गए थे। इससे यह आक्रोश और बढ़ गया था। वहीं, रावण पर लगातार एनएसए बढ़ाए जाने को भी दलितों में आक्रोश बढ़ रहा था। इसके बाद ऐक्ट में संशोधन कर दलितों का गुस्सा कम करने का प्रयास किया। अब चंद्रशेखर की रिहाई को भी दलितों का आक्रोश कम करने की दिशा में एक कदम बताया जा रहा है।
रावण की रिहाई बसपा के लिए बड़ी बनेगी मुसीबत पिछले महीने चंद्रशेखर को रिहा करने के लिए समर्थकों ने दिल्ली में हंगामा किया था। चंद्रशेखर की एनएसए की अवधि नौ महीने हो ही चुकी है। इसे तीन महीने सरकार और बढ़ा सकती थी। दलित चिंतक आईपीएस अधिकारी रहे एसआर दारापुरी की माने तो भाजपा सरकार ने यह राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया है। इससे बसपा को सीधा नुकशान होगा। बसपा के पारम्परिक दलित वोटों का रुझान रावण की ओर बढ़ रहा था, जिसका सीधा लाभ अब भाजपा इस रिहाई के जरिए लेगी। मायावती अब इस संकट से उबरने के उपाय खोजने जा रही हैं।