यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने गठबंधन को लेकर कांग्रेस की तरफ से हो रही बयानबाजी के बाद मंगलवार को स्पष्ट किया कि लोकसभा चुनाव 2019 में विपक्षी गठबंधन में उनकी पार्टी उसी सूरत में शामिल होगी, जब उन्हें लोकसभा सीटों की सम्मानजनक संख्या दी जाएगी। उन्होंने चेतावनी दी कि जो कांग्रेस नेता राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गठबंधन को लेकर प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि उन पर भी (उत्तर प्रदेश में) वही शर्तें लागू होती हैं। माना जा रहा है मायावती के संदेश के पीछे अन्य राज्यों की तुलना के साथ यूपी में कांग्रेस को उसकी हैसियत की याद दिलाना है।
समाजवादी पार्टी पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव नहीं चाहते कि एसपी- बीएसपी गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल हो। मुलायम सिंह का मानना है कि कांग्रेस की हैसियत उप्र में सिर्फ दो सीटों की है। गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भी मुलायम कांग्रेस से गठबंधन के पक्ष में नहीं थे, लेकिन अखिलेश यादव ने कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव लड़ा और परिणाम निराशाजनक ही रहे।
कांग्रेस उप्र में अपनी मौजूदगी का चाहे जितना ढिंढोरा पीट ले लेकिन हकीकत यही है आज सिर्फ अमेठी और रायबरेली में ही कांग्रेस के हर वार्ड और गांव में कार्यकर्ता मिलेंगे। अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद हैं। इसलिए यहां कांग्रेस यहां सक्रिय है। बाकी जिलों में पार्टी की हालत ठीक नहीं है। यह बात मुलायम सिंह यादव और मायावती बखूबी जानते हैं।
गौरतलब है कि उप्र में लोकसभा की 80 सीटें हैं। सपा-बसपा के शीर्ष नेता इन दिनों सीटों के बंटवारे पर माथापच्ची कर रहे हैं। अभी तक सीट बंटवारे का जो फार्मूला सामने आया है उसके मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में जिस दल के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की या दूसरे नंबर पर रही उस सीट से उसी दल का प्रत्याशी मैदान में होगा। लेकिन, इसमें कई पेंच हैं। समाजवादी पार्टी बसपा के दबदबे वाले इलाक़े में भी कुछ सीटें चाहती है। जबकि,बसपा अन्य चुनावों में जीती हुई अपनी कुछ सीटों पर दावेदारी जता रही है।
पिछले लोकसभा चुनाव में उप्र में समाजवादी पार्टी 31 और बसपा 34 सीटों पर दूसरे नंबर पर थीं। कांग्रेस 6, आरएलडी और आप एक-एक सीट पर दूसरे नंबर पर थे। सपा ने कुल पांच सीटें जीतीं। जबकि, बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। इस लिहाज से समाजवादी पार्टी कम से कम 36 सीटों की दावेदारी कर रही है। लेकिन,मायावती कम से कम 45 से 50 सीटों की बात कर रही हंै। इस फार्मूले के मुताबिक कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा सात सीटें मिलेंगी, लेकिन महागठबंधन की सूरत में राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस 20 सीटों की मांग कर सकती है। ऐसे में इस फार्मूले पर न तो कांग्रेस तैयार होगी और न ही समाजवादी पार्टी।
अखिलेश यादव ने कन्नौज से और मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से चुनाव लडऩे की घोषणा पहले ही कर दी है। माना जा रहा है कि मायावती अंबेडकरनगर या बिजनौर की नगीना सीट से चुनाव लड़ सकती हैं।
2019 लोकसभा चुनावों के लिए सपा-बसपा में गठबंधन की बात हो चुकी है। किसको कितनी सीटें मिलेंगी इस पर चर्चा होनी है। इसके अलावा और कौन-कौन सी पार्टियां इस गठबंधन में शामिल होंगी यह अभी साफ नहीं है। मायावती की इच्छा है कि गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल हो, लेकिन अखिलेश यादव को एतराज़ है। वह राष्ट्रीय लोकदल को इसमें शामिल करना चाहते हैं। फिलहाल, गठबंधन में और कितनी पार्टियां साथ आएंगी इस पर स्थिति साफ नहीं है।
उत्तर प्रदेश से जीते सांसदों के बलबूते केंद्र में सरकार बनती रही है। चुनाव बाद यदि महागठबंधन सत्ता में आता है तो पीएम कौन बनेगा? इसको लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं है। हालांकि, बसपा की बैठकों में मायावती को प्रधानमंत्री बनाने एक बात की जा रही है। उधर, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते हैं। हालांकि, वे यह अक्सर कहते रहे हैं कि गठबंधन पीएम पद का उम्मीदवार आपसी बातचीत के बाद तय कर लेगा। जबकि, मायावती भावी गठबंधन को लेकर बेहद फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पर टिप्प्पणी करने पर पार्टी के उपाध्यक्ष रहे जय प्रकाश सिंह और वरिष्ठ नेता वीर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों को गठबंधन पर न बोलने की हिदायत दी है।
बसपा का गठबंधन का इतिहास रहा है। हाल ही में बसपा ने कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में जेडीएस से गठबंधन किया था। यहां पार्टी का एक विधायक जीता। हरियाणा में बसपा का इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन है। छत्तीसगढ़ में मायावती ने अजीत जोगी की पार्टी से चुनावी समझौता किया है। मध्य प्रदेश में पार्टी कांग्रेस से गठबंधन की तैयारी में है।