लखनऊ

क्या मायावती की तरह दलित चेहरा बन पाएंगी सावित्रीबाई फुले? जानें- बीजेपी की दलित राजनीति पर कितना असर पड़ेगा

बसपा सुप्रीमो मायावती के अलावा अब सावित्रीबाई फुले यूपी की राजनीति में दलित चेहरा बनने की ओर अग्रसर हैं…

लखनऊDec 08, 2018 / 01:33 pm

Hariom Dwivedi

क्या मायावती की तरह दलित चेहरा बन पाएंगी सावित्रीबाई फुले? जानें- बीजेपी की दलित राजनीति पर कितना असर पड़ेगा


लखनऊ. मायावती के अलावा अब सावित्रीबाई फुले यूपी की राजनीति में दलित चेहरा बनने की ओर अग्रसर हैं। बीजेपी से अलग होने के बाद सावित्रीबाई फुले दलित महारैली के जरिए 23 दिसंबर को लखनऊ में अपना दम दिखाने को तैयार हैं। उनका दावा है कि इस रैली में देश भर के लाखों को दलित जुटेंगे। भाजपा के टिकट पर बहराइच से सांसद चुनी गईं फुले का राजनीतिक करियर भले ही ज्यादा लंबा नहीं रहा है, लेकिन वह खुद को एक दलित नेता के तौर पर स्थापित करने में कुछ हद तक कामयाब जरूर रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी की राजनीति में सावित्रीबाई फुले का कद अभी इतना बड़ा नहीं है कि वह 2019 के लोकसभा पर कोई व्यापक असर डाल पाएं, लेकिन यह तय है कि आम चुनाव से पहले एक दलित नेता का छिटकना बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं हैं।
राजनीतिक विश्लेषक भले ही उन्हें दलित राजनीति का बड़ा चेहरा न मानते हों, लेकिन उनके समर्थक उनमें मायावती की ही छवि देखी है। बचपन में ही वह भी मायावती से काफी प्रभावित थीं। एक बार उन्हें मायावती की रैली में जाने का मौका मिला, जहां उनके पारिवारिक गुरु अछेवरनाथ कनौजिया ने मंच पर उनसे भाषण दिलवा दिया। उनके भाषण से बसपा सुप्रीमो खासी प्रभावित हुईं। उनके पिता को भी उनमें मायावती की छवि नजर आने लगी। इसके बाद उन्होंने फुले को राजनीति में जाने के लिए प्रेरित किया। उनका कहना था कि जब मायावती मुख्यमंत्री बन सकती हैं तो उनकी बेटी क्यों नहीं? मायावती की तरह दलित समाज के लिए कुछ करने की चाह, उन्हीं के जैसी कदकाठी, कंधे तक कटे बाल और उन्हीं की तरह मिलती-जुलती जिंदगी की कहानी लेकर वह यूपी की राजनीति में उतर गईं।
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छह दिसंबर को भारतीय जनता पार्टी पर दलितों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए सावित्रीबाई फुले ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, जिस तरह से वह करीब बीते साल भर से बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थीं, माना जा रहा था कि वह कभी भी पार्टी से इस्तीफा दे सकती हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो सावित्रीबाई फुले बीजेपी में खास तवज्जो न मिलने से नाराज थीं। उन्हें उम्मीद थी कि दलित चेहरा होने की वजह से उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी, लेकिन नहीं मिली। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी वह अपने करीबी अछेवरनाथ कनौजिया को बहराइच की बलहा विधानसभा सीट से टिकट दिलाना चाहती थीं, लेकिन नहीं मिला। 2019 में उनका टिकट कटना लगभग तय माना जा रहा था, इसलिए उन्होंने बीजेपी से किनारा करना ही उचित समझा।
पॉलिटिकल करियर
सावित्री बाई फुले ने अपना राजनीतिक सफर बहुजन समाज पार्टी से शुरू किया था। एक विवाद के कारण मायावती ने वर्ष 2000 में उन्हें बसपा से निष्कासित कर दिया था। 2001 में वह जिला पंचायत का चुनाव जीतीं और फिर बीजेपी में शामिल हो गईं। 2001 से 2012 तक वह जिला पंचायत सदस्य रहीं। वर्ष 2002, 2007 और 2012 में वह बीजेपी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ीं। 2012 में बहराइच जिले की बलहा सीट से विधायक चुनी गईं। 2014 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा सांसद चुनी गईं।
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