एससी-एसटी एक्ट के विरोध में सवर्ण समाज ने गुरुवार को भारत बंद का आह्वान किया था। सवर्ण समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय समेत कई जातियां आती हैं। सवर्ण समाज का वोट भाजपा का वोट बैंक माना जाता रहा है, लेकिन जिस तरह से एससी-एसटी और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सवर्ण समाज भाजपा के प्रति नाराज है उसका असर कहीं न कहीं भाजपा पर २०१९ के लोकसभा चुनाव में पड़ सकता है। ये दोनों मुद्दे भाजपा के लिए कहीं उलटा न पड़ जाएं। इन दोनों मुद्दों पर केवल सवर्ण समाज में ही नाराजगी नहीं है बल्कि पिछड़े वर्ग में भी भारी नाराजगी है।
दलित समाज ने भी कुछ महीने पहले मोदी सरकार को विरोध किया था और भारत बंद का एलान किया था। भारत बंद के दौरान कई लोगों की जान चली गई थी और काफी नुकसान भी हुआ था। यूपी में लगभग २२ प्रतिशत दलित हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों ने भी भाजपा के पक्ष में वोट किया था। अब यह वर्ग भी भाजपा सरकार से नाराज चल रहा है। ऐसे में दलितों की नाराजगी भाजपा के लिए भारी पड़ सकती है।
यूपी की राजनीति में पिछड़े वर्ग भी भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। अगर पिछड़ी जाति के वोट बैंक पर नजर डालें तो यह कुल ३५ प्रतिशत हैं, जिसमें 13 फीसदी यादव, 12 फीसदी कुर्मी और 10 फीसदी अन्य जातियों के लोग आते हैं। अगर ये पिछड़ी जातियां बीजेपी से खफा हो गईं तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
यूपी में ओबीसी का अगर कोई बड़ा चेहरा है तो वह मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव हैं। अभी यूपी में पिछड़े वर्ग में इन दोनों से बड़ा कोई चेहरा नहीं है। उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति कुल ३५ प्रतिशत हैं, जिसमें 13 फीसदी यादव, 12 फीसदी कुर्मी और 10 फीसदी अन्य जातियों के लोग आते हैं। वहीं मायावती की दलित वर्ग में सबसे अधिक पैठ मानी जाती है। दलित वर्ग का मायावती से बड़ा चेहरा यूपी ही नहीं देश में भी काई नहीं है। अगर ओबीसी और दलित वर्ग सपा-बसपा गठगंधन के साथ चला गया तो भाजपा के लिए यूपी में २० सीटें पाना भी आसान नहीं होगा। वहीं जिस तरह से सवर्ण भी भाजपा से खफा हैं, उससे तो यही लगता है कि भाजपा की राहें 2019 में आसान नहीं होंगी।
एससी/एसटी एक्ट के विरोध में भारत बंद का समर्थन करने वाले सवर्ण समाज के लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने इसमें संशोधन किया था और कहा था कि पहले मामले की जांच होगी और उसके बाद गिरफ्तारी, लेकिन मोदी सरकार ने इसमें पहले गिरफ्तारी का आदेश वाला कानून बना दिया यह सवर्ण समाज के लिये सबसे घातक और इसका विरोध लगातार चलता रहेगा।