Phagotsav special2021: लुप्त हो रही फाग गायन शैलियों का संरक्षण जरुरी
लखनऊ। (Phagotsav, Phagotsav 2021) लुप्त हो रही फाग गायन शैलियों के संरक्षण हेतु आवष्यक कदम नहीं उठाये गये तो हमारी यह धरोहर काल कवलित होने की कगार पर खड़ी है। यह चिन्ता गुरुवार को लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित सात दिवसीय फागोत्सव के समापन सन्ध्या में विद्वानों ने व्यक्त की। वरिष्ठ लोकगायिका प्रो. कमला श्रीवास्तव की अध्यक्षता में हुए कार्यक्रम के दौरान लोक साहित्य के मर्मज्ञ डा. रामबहादुर मिश्र ने व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अस्सी के दषक में उन्होंने गांव-गांव जाकर लगभग एक हजार पारम्परिक फाग गीतों को संकलित किया था जिसमें पचास से अधिक ऐसे गीत थे जिन्हें अवध क्षेत्र की केवल महिलायें ही गाती हैं। इन होरी गीतों में अधिकांश कामभावनाओं का उद्दीपन व रति विषयक सन्दर्भ तो मिलते ही हैं लोक भावनाओं की उन्मुक्त अभिव्यक्ति इसे सरस बनाती है।
(Phagotsav, Phagotsav 2021) फागोत्सव की शुरुआत गणेष होली से हुई। डा. विद्याविन्दु सिंह ने राम सीता के पंचवटी में होने वाली होली को लोक मन की उपज बताते हुए कहा कि ऐसे प्रसंग में हमारा लोक सीता व राम के साथ ही चलता है। उनके हर सुख दुःख को अपना समझता है। कार्यक्रम के दौरान स्वरा त्रिपाठी ने सिया निकली अवधवा की ओर कि होली खेलें रामलला गीत पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया। उषा पांडिया ने अवध नगरिया छाई ये बहरिया, दया चतुर्वेदी ने राग विहाग में कौन मलो री गुलाल कपोलन, अम्बुज अग्रवाल ने झुक जाओ तनिक रघुबीर बन्नी मेरी छोटी सी, सुमति मिश्रा ने होली में नन्दकिशोर, मुक्ता चटर्जी ने कान्हा ने भिगोई मोरी सारी कहत राधा गोरी, डॉ. इन्दु रायजादे ने कइसे फागुन होरी खेलीं हो रामा सईयां नाहीं अइले, अंजलि सिंह ने फागुन के दिन चार होली खेल। होली के रंग में सराबोर सुमधुर गायकी से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
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