यूपी में खाद की कमी के यह हालात तब है कि जब हाल में हुई बरसात के बाद खेतों के गीला हो जाने पर जुताई और बुआई का काम देर से शुरू होगा। खेतों के सूखते ही गेंहू, सरसों, आलू, चना, आदि रबी की फसलों के लिए जुताई और बुआई का काम तेज होगा। तब फसलों की बुआई का काम शुरू होते ही डीएपी सहित अन्य खादों की मांग तेज होगी। मांग के अनुरूप आपूर्ति न हो पाने पर जुताई और बुआई पर असर पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि डीएपी उर्वरक की कमी एकाएक हो गयी है। इस आवश्यक खाद की कमी लंबे समय से चली आ रही है। इसीलिए सहकारी समितियों से सब्सिडी वाली खाद पाने के लिए किसान रात-रातभर लाइन में लग रहे हैं।
उप्र में खाद की जितनी मांग है उसकी तुलना में इफ्को आधे से भी कम केवल 40 फीसदी के आसपास ही खाद की आपूर्ति कर रहा पा रहा है। इफ्को द्वारा अपनी क्षमता के मुताबिक खाद की आपूर्ति ना कर पाने की कारण खाद पर आयात की निर्भरता और भी बढ़ गयी है। एक बोरी खाद के लिए किसान पूरे-पूरे दिन सहकारी समितियों में बैठे रहते हैं। समितियों से छूटयुक्त खाद पाने के लिए हर जिले में मारामारी है। इसीलिए खाद की कालाबाजारी भी चरम पर है। निजी दुकानदार खाद के मनमाने दाम वसूल रहे हैं। नेपाल की सीमा से सटे जिलों के अलावा यूपी की सीमाएं जिन अन्य प्रदेशों से लगती हैं उन 45 जिलों को कलेक्टर को यह निर्देश दिए गए हैं वे सीमाओं पर चौकसी बरतें और यूपी से बाहर जाने वाली उर्वरक पर सख्त नजर रखें। ताकि खाद की कालाबाजारी रोकी जा सके। इसके साथ ही दुकानदारों और समितियों को आदेश दिया गया है कि वे किसानों की जोतबही को देखने के बाद ही उनकी जरूरत के हिसाब से उर्वरक उपलब्ध करवाएं। सरकार की इन तमाम कवायदों का मकसद सिर्फ यही है कि उर्वरक की कृत्रिम किल्लत न खड़ी की जा सके।
समय से खाद न उपलब्ध होने से किसानों की परेशानियां लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। खाद की कमी का असर अनाज के उत्पादन पर भी पड़ सकता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह न केवल भारत सरकार से समुचित मात्रा में खाद की मांग करे बल्कि उसके वितरण की भी व्यवस्था करे। खाद की यही किल्लत बरकरार रही तो किसानों द्वारा अप्रिय कदम उठाए जाने के और मामले भी सामने आ सकते हैं। इसलिए केंद्र और प्रदेश सरकार को जल्द ही इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। ताकि आने वाले संकट से बचा जा सके।