बालासोर हादसे की वजह बना सिग्नल, आइए जानते हैं कैसे दिए जाते हैं रेलवे में संकेत
Odisha Train Accident: बालासोर हादसे का कारण बना रेलवे सिग्नल, ट्रेन को चलाने में लोको पायलट को बिना बोले, बिना कोई लिखित संदेश भेजे कोई जानकारी देने का काम सिग्नल करता है।
Odisha Train Accident: ओडिशा के बालासोर (Balasore) में शुक्रवार यानी 2 जून की रात को हुए ट्रेन हादसे में मृतकों की संख्या 200 और 1000 से ज्यादा लोग गंभीर लोग से घायल हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने शनिवार को घटना स्थल का दौरा किया। बालासोर घटना स्थल पर राहत बचाव कार्य जारी है। रविवार को देर रात केंद्रीय रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव के नेतृत्व में अप-लाइन पर मालगाड़ी को दौड़ाया गया। केंद्रीय रेल मंत्री ने इस सीबीआई को घटना के आदेश दिये है। रेल मंत्रायलय से जारी बयान में रविवार को बताया गया कि घटना ग्रीन सिग्नल देने की वजह से हुई है। आइए जानतें हैं रेलवे के सिग्नल कैसे काम करते हैं।
ट्रेन को चलाने में लोको पायलट को बिना बोले, बिना कोई लिखित संदेश भेजे कोई जानकारी देने का काम सिग्नल करता है। आप सभी ने रेलवे स्टेशन देखे होंगे। रेलवे स्टेशनों पर दो प्रकार की लाइनें होती है। पहली सिंगल लाइन और दूसरी डबल लाइन। सिंगल लाइन में स्टेशन पर कम से कम 3 पटरियां होती हैं। डबल लाइन चार होती हैं। इनमें 2 लूप लाइन होती है। जिसपर स्टेशन पर रुकने वाली गाड़ियों को हाल्ट कराया जाता है। अगर स्टेशन गाड़ी का स्टापेज नहीं है तो, उसे मेन लाइन से आगे के लिए निकाल दिया जाता है।
लीवर से लोको पायलट को मिलता है सिग्नल लीवर चार प्रकार के होते है। इन लीवरों द्वारा ही लोको पायलट को पता चलता है कि ट्रेन रोकनी है या नहीं, आगे का रास्ता खाली है या नहीं। 1.लाल लीवर – आपने देखा होगा स्टेशन के ऑउटर में दोनों तरफ सिग्नल पोल लगे हुए होते हैं। इसी सिग्नल पर अगर लाल बत्ती जलती है तो, गाड़ी को रोकना होता है। 2.हरा लीवर – वार्नर सिग्नल के लिए, इस पर गाड़ी रुकती नहीं है। अगर पोल पर हरी बत्ती जलती है तो वह लोको पायलट को संकेत होता है कि स्टेशन पर बिना रुके गाड़ी निकल जाएगी। 3.काला लीवर – पाइंंट्स आपरेट करने के लिए। 4.नीला लीवर – पाइंंट्स पर लाक लगाने के लिए। 5.सफेद लीवर – ये स्पेयर (अतिरिक्त) लीवर होते हैं भविष्य के एक्सपेन्शन के लिए
इन संकेतों से स्टेशन पर रुकती है ट्रेन 1. आगमन सिग्नल और 2. प्रस्थान सिग्नल आगमन सिगनल ट्रेन को स्टेशन पर रुकने का संकेत देता है। आगमन सिग्नल तीन प्रकार के होते हैं। 1.डिस्टेन्ट सिगनल – यह सिग्नल होम सिग्नल से 2 किलोमीटर पहले होता है। इसमें लाल बत्ती नहीं होती है। केवल दो पीली और हरी होती है। इस पर ट्रेन रुकती नहीं है। यह सिग्नल अपने से आगे के सिग्नल के बारे में संकेत देता है।
2.इनर डिस्टेन्ट सिग्नल – यह सिग्नल से 1 किलोमीटर आगे और होम सिगनल से 1 किलोमीटर पहले लगा होता है। इस पर भी ट्रेन नहीं रुकती है। यह आगे के सिगनल जानकारी देता है। यदि यह सिगनल केवल पीला हो तो लोको पायलट समझ जाता है कि इससे आगे वाला सिग्नल यानी होम सिगनल लाल होगा और उस पर गाड़ी को रोकना है। अगर दो पीली बत्ती हो तो आगे वाला सिग्नल यानी होम सिग्नल यलो या यलो विद रूट आर्म मिलेगा। इसका मतलब है गाड़ी स्टेशन पर रुकेगी मेन लाइन में या लूप लाइन में। यदि ये सिगनल हरा हो तो इसका मतलब है कि होम सिगनल हरा है, मेन लाइन हरा है और एडवांस स्टार्टर भी हरा है और गाड़ी को स्टेशन पर बिना रोके गति के साथ निकलना है।
3.होम सिग्नल – यह सिग्नल इनर डिस्टेन्ट से 1 किलोमीटर पहले और स्टेशन यार्ड के सबसे करीब पाइंंट्स से 180 मीटर की दूरी पर होता है। इस सिग्नल में लाल, पीला, हरा तीन मेन बत्तियां लगी होती हैं और इसके ऊपर टाप पर एक जंक्शन टाइप रूट इंडीकेटर लगा होता है जो ये बताता है कि गाड़ी को किस नम्बर की लूप लाइन में जाना है। दायें जाना है या बाँयें जाना है। लाल का मतलब रुकना, पीला का मतलब मेन लाइन पर जाना है। यलो विद रूट का मतलब लूप लाइन में जाना है।
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