लोकसभा चुनाव की हार के बाद समाजवादी पार्टी अब अपने छिटके मूल वोट बैंक को बचाने में जुट गई है। वर्ष 2022 के यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव को लक्ष्य बनाकर चल रहे पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को एसपी के मूल वोट बैंक यादव की एकजुटता बनाए रखना जरूरी लग रहा है। यही वजह है कि पुष्पेंद्र मुठभेड़ कांड के बाद झांसी का दौरा कर उन्होंने सरकार को घेरने के साथ अपने वोटों को भी साधने का संदेश दिया है। इस प्रकरण को उछालकर अखिलेश ने यादवों के बीच एक बार फिर से लीड हासिल करने में सफलता पाई है।
यादवों को बटोरने की कवायद बीते लोकसभा चुनाव में बीएसपी से गठबंधन के बाद भी परिणाम नहीं मिले। कहा ला रहा है कि इस समझौते से यादव पट्टी के वोट भी छिटक गए थे। अब सपा ने अपने मूल वोट बैंक को साधने की कवायद शुरू कर दी है। सपा के मौजूदा नेतृत्व से रूठे हुए यादव नेताओं को मानने की कवायद शुरू की गई है। उसी क्रम में आजमगढ़ के पूर्व सांसद रमाकांत यादव को पार्टी में शामिल कराकर पूर्वांचल के यादवों को साधने का एक बड़ा प्रयास किया गया है। रमाकांत 1991 से लेकर 1999 तक एसपी से विधायक और सांसद चुने जाते रहे हैं।
मुस्लिम-यादव फार्मूला फिर से सपा परिवार में एकता की कोशिशों में एक धड़ा तेजी से लगा हुआ है, पर वह कितना कामयाब होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। पार्टी मुस्लिम और यादव का गणित मजबूत करना चाहती है। इसीलिए पार्टी ने मुस्लिम नेताओं को भी बैटिंग करने को मैदान में उतारा है। जानकार कहते हैं कि यादवों में एकता रहेगी तो मुसलमान और यादव पुराने समय की तरह एक हो जाएंगे।