उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों के किसान छुट्टा जानवरों की समस्या से परेशान हैं। वह रात-दिन जागकर खेतों की रखवाली कर रहे हैं, बावजूद फसल बचाना मुश्किल है। अन्ना जानवरों की वजह से सूबे की हजारों एकड़ जमीन परती पड़ी है। किसान खेती छोड़कर मजदूरी करने को विवश हैं। गुस्साये किसान अस्पतालों और स्कूलों में मवेशियों को भरकर अपना विरोध जता रहे हैं। किसानों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ सरकार अन्ना जानवरों की समस्या से निपटने में विफल है, 2019 में बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
चित्रकूट जिले में मऊ विकास खण्ड के किसान भारत भूषण द्विवेदी (45) कहते हैं कि जिले में लगभग 60 हजार अन्ना जानवर घूम रहे हैं, जो हमारी फसल को चट कर जा रहे हैं। रायबरेली जिले मौकेडीह गांव के किसान राजेन्द्र प्रसाद मिश्र (54 साल) कहते हैं कि सरकार किसानों की आय दोगुना करने की बात करती है, लेकिन छुट्टा जानवरों के कारण किसान भुखमरी के कगार पर पहुंच गये हैं। श्रावस्ती जिले के ददौरा गांव निवासी विजय यादव (35) कहते हैं कि पिछली सरकार में तो राहत थी, मगर जब से भाजपा सरकार आई है छुट्टा जानवरों का आतंक और बढ़ गया है, क्योंकि अब इन्हें कोई पकड़ने से भी डरता है। कानपुर देहात जिले में अनन्तपुर धौकल निवासी रामकुमार ने बताया कि छुट्टा मवेशियों की वजह से किसानों को रात भर खेतों में झोपड़ी बनाकर फसल की रखवाली करनी पड़ रही है, फिर भी जानवरों के झुंड से फसलों को बचा पाना मुश्किल हो रहा है। इस वजह से अब किसान सड़कों पर आ गए हैं।
घुट-घुटकर दम तोड़ रहे हैं गौवंश
उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में पशु आश्रय स्थल बने हैं, ज्यादातर जगहों पर जानवरों का पेट भरने के लिए न तो चारे-पानी की उचित व्यवस्था है और न ही ठंड से बचाने के लिए छांव की व्यवस्था है। बीते दिनों बांदा जिले में बड़ोखर ब्लॉक के गुरेह गांव में भूख-प्यास और ठंड के कारण करीब 10 गायों की मौत हो गई। आये दिन सूबे के अलग-अलग जिलों से ठंड और भूख से गायों के मरने की खबरें आती रहती हैं। इसके अलावा पूरे यूपी में हर दिन हजारों गौवंश किसानों द्वारा खेत के चारों ओर लगाये गये नुकीले तारों की चपेट में आकर जख्मी हो जा रहे हैं, जो इलाज न होने की वजह से घुट-घुटकर दम तोड़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में पशु आश्रय स्थल बने हैं, ज्यादातर जगहों पर जानवरों का पेट भरने के लिए न तो चारे-पानी की उचित व्यवस्था है और न ही ठंड से बचाने के लिए छांव की व्यवस्था है। बीते दिनों बांदा जिले में बड़ोखर ब्लॉक के गुरेह गांव में भूख-प्यास और ठंड के कारण करीब 10 गायों की मौत हो गई। आये दिन सूबे के अलग-अलग जिलों से ठंड और भूख से गायों के मरने की खबरें आती रहती हैं। इसके अलावा पूरे यूपी में हर दिन हजारों गौवंश किसानों द्वारा खेत के चारों ओर लगाये गये नुकीले तारों की चपेट में आकर जख्मी हो जा रहे हैं, जो इलाज न होने की वजह से घुट-घुटकर दम तोड़ रहे हैं।
सरकार ने गौवंश के लिए दिया 250 करोड़ का बजट
उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां गोवंश की रक्षा के लिए सालभर के भीतर 250 करोड़ जारी किए गए। हाल ही में सरकार ने यूपी के हर जिले में ग्रामीण क्षेत्रों और नगरीय क्षेत्र में न्यूनतम 1000 निराश्रित पशुओं के लिए आश्रय स्थल बनाने की घोषणा की है। पशु आश्रय स्थलों को मनरेगा के माध्यम से ग्राम पंचायत, विधायक, सांसद निधि से निर्माण कराया जाएगा। इसके लिए सूबे के प्रत्येक नगर निगम को 10-10 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं।
उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां गोवंश की रक्षा के लिए सालभर के भीतर 250 करोड़ जारी किए गए। हाल ही में सरकार ने यूपी के हर जिले में ग्रामीण क्षेत्रों और नगरीय क्षेत्र में न्यूनतम 1000 निराश्रित पशुओं के लिए आश्रय स्थल बनाने की घोषणा की है। पशु आश्रय स्थलों को मनरेगा के माध्यम से ग्राम पंचायत, विधायक, सांसद निधि से निर्माण कराया जाएगा। इसके लिए सूबे के प्रत्येक नगर निगम को 10-10 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं।
गाय चाहिये, बछड़ा नहीं
सरकार गौवंश की रक्षा के लिए दिल खोलकर बजट दे रही है, लेकिन किसान गौवंशों खासकर बैलों (सांड़ों) व बछड़ों से परेशान हैं। वह गाय तो चाहते हैं, पर बैल नहीं। रायबरेली के किसान जगराम (44) का कहना है कि उनके लिए बैलों की उपयोगिता खत्म हो चुकी है। इसे समझाते हुए वह कहते हैं कि खेती किसानों में बैलों का काम सिर्फ दो या तीन महीने का होता है, बदले में उन्हें साल भर खिलाना पड़ता है। जब ट्रैक्टर से खेती करवाना ज्यादा आसान और सस्ता है तो फिर बैलों को क्यों पाला जाये? ऐसा ही कुछ हाल भैसों का भी है। किसान पड़िया तो चाहते हैं, लेकिन पड़वा नहीं।
सरकार गौवंश की रक्षा के लिए दिल खोलकर बजट दे रही है, लेकिन किसान गौवंशों खासकर बैलों (सांड़ों) व बछड़ों से परेशान हैं। वह गाय तो चाहते हैं, पर बैल नहीं। रायबरेली के किसान जगराम (44) का कहना है कि उनके लिए बैलों की उपयोगिता खत्म हो चुकी है। इसे समझाते हुए वह कहते हैं कि खेती किसानों में बैलों का काम सिर्फ दो या तीन महीने का होता है, बदले में उन्हें साल भर खिलाना पड़ता है। जब ट्रैक्टर से खेती करवाना ज्यादा आसान और सस्ता है तो फिर बैलों को क्यों पाला जाये? ऐसा ही कुछ हाल भैसों का भी है। किसान पड़िया तो चाहते हैं, लेकिन पड़वा नहीं।
उपाय है, लेकिन समय लगेगा
यूपी सरकार सेक्स सॉर्टेड सीमन (गोवंशीय पशुओं में वर्गीकृत वीर्य का उपयोग) योजना को मंजूरी दे चुकी है। इससे 90 फीसदी तक आपकी गाय बछिया को ही जन्म देगी। अभी तक सरकार की यह योजना इटावा, लखीमपुर-खीरी और बाराबंकी जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर चल रही थी। इस योजना को अब प्रदेश के सभी 75 जिलों में लागू किया जाएगा। हालांकि, अभी इस योजना को धरातल पर लाने में लंबा वक्त है।
यूपी सरकार सेक्स सॉर्टेड सीमन (गोवंशीय पशुओं में वर्गीकृत वीर्य का उपयोग) योजना को मंजूरी दे चुकी है। इससे 90 फीसदी तक आपकी गाय बछिया को ही जन्म देगी। अभी तक सरकार की यह योजना इटावा, लखीमपुर-खीरी और बाराबंकी जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर चल रही थी। इस योजना को अब प्रदेश के सभी 75 जिलों में लागू किया जाएगा। हालांकि, अभी इस योजना को धरातल पर लाने में लंबा वक्त है।