प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुहिम को संकल्प से सिद्धि की ओर हकीकत में अभी से दम तोड़ने लग रहा है। प्रदेश में भी सभी सरकारी कार्यालयों विकास भवन, पुलिस विभाग, जिला पंचायत, ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, विकास खंड कार्यालय, सरकारी प्राथमिक स्कूल और तमाम सरकारी संस्थान अपनी इस मुहिम को सफल बनाने में घोर लापरवाही बरत रहे हैं। जो सिर्फ समाज और मीडिया में दिखाने के लिए औपचारिकता भर है।अभियान में बच्चों को तो कहीं समाजसेवियों को और युवाओं को इस अभियान में आगे कर नेता अपनी राजनीति कर रहे है। स्वछता अभियान के नाम पर अभी तक सिर्फ लोगों को जागरुक करने का काम किया जा रहा है लेकिन उन लोगों पर कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं किया गया है जो इस कूड़े को यूंही सड़क पर फेंक कर चल देते हैं। इसमें अभी तक कोई सुधार नहीं हुआ। स्वछता अभियान को पलीता लगाने में सरकारी विभागों में कोई कोर कसर नहीं रखी है। स्वच्छता अभियान के नाम पर भारत सरकार ने सेस भी लगा रखा है जिसका भुगतान हर छोटे से बड़ा नागरिक किसी न किसी रूप में कर रहा है। किसी भी शहरी क्षेत्र के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में भी कचरे के निस्तारण का कोई विकल्प अभी तक तैयार नहीं हुआ। कहीं शहर के मुख्य द्वार पर तो कई गांव के नुक्कड़ पर ऐसे ही कूड़ा फेंक दिया जाता है, जिस पर किसी भी जिम्मेदार अधिकारी की नजर तक नहीं पड़ रही है। बस स्वच्छता अभियान भी कागजों में चल रहा है।यह भी नहीं देखना स्वछता अभियान सिर्फ एक दिन चला और बंद। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम है कि हमारा देश साफ सुथरा रहे। लेकिन जब तक इस अभियान की जवाबदेही और जिम्मेदारी तय नहीं की जाएगी। तब तक यह अभियान यूं ही दम तोड़ता नजर आएगा एनजीटी के सख्त रुख के बाद भी के बाद भी खुलेआम प्रतिबंधित पॉलीथिन का प्रयोग किया जा रहा है। लेकिन ना नगरपालिका नगरपंचायत इस पर कोई कार्यवाही कर रहे हैं जो कचरे को बढ़ावा देता जा रहा है जहां भी हां भी मनचाहा पॉलिथीन में पैक करके थोड़ा फेंक दिया यह हकीकत है स्वच्छता अभियान की।