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अयोध्या

बड़ा खुलासा: कोर्ट के बाहर कभी नहीं सुलझ सकता राम मंदिर मुद्दा, ये है वजह

कोर्ट के बाहर कभी नहीं सुलझ सकता राम मंदिर मुद्दा, मामले में फंस सकता है पेंच

अयोध्याNov 21, 2017 / 02:59 pm

Prashant Srivastava

ram mandir
लखनऊ. अयोध्या में राम मंदिर को लेकर चर्चा हर ओर है। बीते सोमवार शिया वक्फ बोर्ड ने इसको सुलझाने को लेकर एक फॉर्मुला भी सबके सामने रखा। इसके अलावा आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने भी दोनों पक्षों से बातचीत कर मामले को सुलझाने की कोशिश की लेकिन इस मामले में ऐसा कानूनी पेंच है कि मुस्लिम पक्षकार एक बार विवादित स्थान पर राममंदिर के लिए रजामंद भी जाए, तब भी कोर्ट से बाहर समझौता नामुमकिन है।
वक्फ एक्ट से फंस सकता है पेंच

सूत्रों के मुताबिक वक्फ एक्ट इसमें रोड़ा है। वक्फ एक्ट के मुताबिक, 2013 के सेक्शन 29 में साफ है कि मस्जिद, कब्रिस्तान, खानकाह, इमामबाड़ा, दरगाह, ईदगाह, मकबरे को न बेची जा सकती है, न किसी को ट्रांसफर किया जा सकता है, न गिरवी रखी जा सकती है, न गिफ्ट की जा सकती है और न ही उसके प्रयोग के स्वरूप को बदला जा सकता है। ये एक्ट सुन्नी और शिया वक्फ बोर्ड दोनों के लिए है. इसके विपरीत कोई काम करता है तो वह अवैध माना जाएगा। यही कारण है कि मुस्लिम पक्षकार चाहकर भी समझौता नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें कोई कानूनी अधिकार नहीं हैं।
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हाईकोर्ट का ये था फैसला

राम मंदिर विवाद पिछले कई साल से चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं बाबरी मस्जिद की ओर से पैरवी सुन्नी वक्फ बोर्ड कर रहा है। इस तरह ये प्रॉपर्टी सुन्नी वक्फ बोर्ड की है। 1940 में शिया वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि ये मस्जिद शिया समुदाय की है और उन्हें सौंपी जाए। हाईकोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मजबूत दावा पेश करते हुए पैरवी की। 1946 में जिला कोर्ट ने शिया के दावे को खारिज कर दिया और बाबरी मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे पर मुहर लगा दी। बता दें कि सुन्नी पक्ष ने तर्क दिया था कि मौजूदा समय में मस्जिद का मुतवल्ली और इमाम सुन्नी हैं और रमजान के महीने में इस मस्जिद में तरावी भी होती है। सुन्नी पक्ष के इस तर्क पर कोर्ट ने शिया के दावे को खारिज करते हुए सुन्नी पक्ष में फैसला दे दिया था। बाबरी मस्जिद में 1949 में मूर्ति रखी गई तो अयोध्या के क्षेत्रीय मुसलमानों ने मुकदमा दायर कर दिया। इसके बाद 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस मुकदमा ए़डाप्ट कर लिया है। तब से इस मुकदमें की पैरवी मुस्लिम पक्षकारों में सुन्नी वक्फ बोर्ड कर रहा है। बाबरी मस्जिद ही नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड की किसी भी प्रापर्टी का मुतवल्ली सिर्फ रखवाला होता है मालिक नहीं। इसीलिए मुस्लिम पक्षकार चाहकर भी समझौता नहीं कर सकते हैं।
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का फॉर्मुला

अयोध्या में राम मंदिर विवाद को सुलझाने के लिए शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने दोनों पक्षों के बीच समझौते का पांच सूत्रीय फॉर्मुला सोमवार को पेश किया है। इस फॉर्मुले के तहत अयोध्या में राम मंदिर और लखनऊ में मस्जिद बनाने की बात कही है। इस प्रपोजल पर कई महंतों ने सहमति जताई है। 5 दिसंबर को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।
सोमवार को शिया वक्फ बोर्ड वसीम रिजवी और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये जानकारी दी। शिया वक्फ बोर्ड के फैसले पर आभार जताया और कहा कि इसके लिए हिंदू समाज उनका आभारी रहेगा। वसीम रिजवी ने कहा कि हम आपसी सहमति से हल निकालना चाहते हैं। इस मामले में लड़ाई-झगड़ा नहीं चाहते हैं। अयोध्या में राम मंदिर बने जबकि लखनऊ के हुसैनाबाद में मस्जिद-ए-अमन के नाम से मस्जिद बनाएंगे। इसका प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। हमने कभी भी कोई वकील कोर्ट में खड़ा नही किया तो शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से किसने वकील खड़ा किया। इसकी जांच होनी चाहिये।

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