अखिलेश और मायावती में गुपचुप बैठक
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बेंगलुरु में कुमारस्वामी के बहाने अपनी चुनावी पारी पर भी चर्चा हुई। संगरिला होटल में दोनों के बीच मुलाकात की ख़बरें भी मीडिया तक पहुंची। मायावती और अखिलेश के बीच यह मुलाकात फूलपुर और गोरखपुर में हुए उपचुनावों के बाद दूसरी मुलाकात है। जानकार बताते हैं कि इस बैठक में मायावती और अखिलेश ने आगामी कैराना उपचुनाव के साथ ही लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भी बातचीत की। लेकिन इतिहास को देखें तो ये राह आसान नहीं।
अब तक कोई सफल गठबंधन नहीं
7 रेस कोर्स का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुज़रता है। सबसे अधिक लोकसभा सीट 80 यूपी में हैं। ऐसी में अखिलेश मायवती की इस जोड़ी पर सबकी नज़र है। यदि ये एकता रंग लाइ तो इससे इतिहास भी बदलेगा। गठबंधन को लेकर प्रदेश का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। प्रदेश में अब तक कोई भी गठबंधन सरकार पूरा कार्यकाल नहीं निभा पाई है।
10 वी विधानसभा में पहला गठबंधन
ये सिलसिला 10 वी विधानसभा से शुरू हुआ। 1989 से जब मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस दौरान वे भाजपा के समर्थन से जनता दल से मुख्यमंत्री बने थे। इस गठबंधन के दौरान 1990 में जब राम मंदिर आंदोलन के दौरान लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोका गया तब भाजपा ने केंद्र और राज्य सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। 1 साल 165 दिन चली सरकार के बाद में 1991 की राम लहर में भाजपा की सरकार पूर्ण बहुमत से बनी। मगर 1992 में बाबरी मज़्जिद विध्वंस के बाद भाजपा बर्खास्त हो गयी।बसपा सपा गठबंधन से निकला गेस्ट हाउस कांड
बसपा और कांग्रेस में भी नहीं बनी बात 2001 में बसपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ। बसपा कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में आई लेकिन 1 साल 118 दिन बाद कांग्रेस ने सपा को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवा दी। इसके बाद 2007 में और 2012 में पूर्ण बहुमत की सरकारें प्रदेश में बनी।
इन सब के बीच सियासत की नयी कहानी लिखनी होगी।