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लखनऊ

Dhanteras 2018 : भगवान धनवंतरी कर देंगे आपको मालामाल, बस करना होगा यह उपाय

यही कारण है कि इस दिन को धनतेरस के रूप में पूजा जाता है।
 

लखनऊNov 03, 2018 / 03:42 pm

Ashish Pandey

Dhanteras 2018

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लखनऊ. हमारे देश में काफी सारे त्योहार मनाए जाते हैं। हम यह कह सकते हैं कि भारत त्योहारों का देश है। यहां हर त्योहार की अपनी-अपनी मान्यता है। सबसे बड़ी बात यह है कि लोग हर त्योहार को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। वहीं बहुत से लोग त्योहार मनाते तो जरूर हैं, लेकिन उन्हें इस त्योहार को वे क्यों मनाते हैं इसके पीछे की वजह मो नहीं जानते। 7 नवंबर को दीपावली है। दीपावली की शुरूआत धनतेरस से ही हो जाती है। धनतेरस कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी यानी दीपावली से दो दिन पहले आता है। इस दिन लोग घर के दरवाजे के पास दीया जलाते हैं और नया बर्तन या चांदी खरीदते हैं। धनतेरस की अपनी मान्यता है। धनतेरस क्यों मनाते हैं, इसकी पीछे का क्या कारण है। धनतेरस के बारे में यहां आपको काफी कुछ जानकारियां दी जा रही है।
शास्त्रों के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन के दौरान चिकित्सा विज्ञान के देवता भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे। भगवान धनवंतरी का जन्म धनत्रयोदशी के दिन हुआ था और यही कारण है कि इस दिन को धनतेरस के रूप में पूजा जाता है। धनतेरस पर खरीदारी को शुभ माना जाता है। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस आता है। इस दिन लोग खरीदारी करते हैं। मान्यता है इस दिन गहनों और बर्तनों की खरीदारी खूब की जाती है।
शुभ होता है पीतल व चांदी के बर्तन खरीदना

भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं और वहीं दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ वे अमृत कलश लिए हुए हैं।
ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन पीतल का बर्तन या चांदी खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है लेकिन, अगर धनवंतरी की प्रिय वस्तु पीतल की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है।
दीपक जलाने का महत्व

खरीदारी ही नहीं धनतेरस के दिन घर के मुख्य द्वार पर एक दीया जलाने की मान्यमा है। प्राचीन समय में हेम नाम का एक राजा रहता था। विवाह के कई सालों बाद उसकी एक संतान उन्पन्न हुई, जब ज्योतिषियों से राजा ने पूछा तो ज्योतिषियों ने बताया कि राजकुमार के विवाह के ठीक चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी।
यह बात को जानकर राजा और रानी काफी दुखी हो गए। धीरे-धीरे समय बीतता गया और राजकुमार ने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद राजकुमार के प्राण निकल गए यानी राजकुमार की मृत्यु हो गई। राजकुमार के प्राण लेकर यमदूत चले गए, लेकिन राजकुमार की पत्नी के शोक विलाप को देखकर उन्होंने यमराज से पूछा की कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे इंसानों की अकाल मृत्यु न हो सके।
यमराज ने इसका उपाय बताते हुए कहा की कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की रात को जो मनुष्य दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाएगा वो अकाल मृत्यु से बच सकता है। तभी से धनतेरस के दिन दीया जलाने की परम्परा की शुरुआत हुई।
यह है पूजन का शुभ मुहूर्त

-शाम 6.05 बजे से शाम 8.01 बजे तक
-अवधि- 1 घंटा 55 मिनट
-प्रदोष काल- शाम 5.29 से रात 8.07 बजे तक
-वृषभ काल- शाम 6.05 बजे से रात 8.01 बजे तक
-त्रयोदशी तिथि आरंभ- 5 नवंबर, सुबह 01.24 बजे से
-त्रयोदशी तिथि खत्म- 5 नवंबर, रात्री 11.46 बजे

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