ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन पीतल का बर्तन या चांदी खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है लेकिन, अगर धनवंतरी की प्रिय वस्तु पीतल की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है।
यह बात को जानकर राजा और रानी काफी दुखी हो गए। धीरे-धीरे समय बीतता गया और राजकुमार ने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद राजकुमार के प्राण निकल गए यानी राजकुमार की मृत्यु हो गई। राजकुमार के प्राण लेकर यमदूत चले गए, लेकिन राजकुमार की पत्नी के शोक विलाप को देखकर उन्होंने यमराज से पूछा की कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे इंसानों की अकाल मृत्यु न हो सके।
यमराज ने इसका उपाय बताते हुए कहा की कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की रात को जो मनुष्य दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाएगा वो अकाल मृत्यु से बच सकता है। तभी से धनतेरस के दिन दीया जलाने की परम्परा की शुरुआत हुई।
-अवधि- 1 घंटा 55 मिनट
-प्रदोष काल- शाम 5.29 से रात 8.07 बजे तक
-वृषभ काल- शाम 6.05 बजे से रात 8.01 बजे तक
-त्रयोदशी तिथि आरंभ- 5 नवंबर, सुबह 01.24 बजे से
-त्रयोदशी तिथि खत्म- 5 नवंबर, रात्री 11.46 बजे