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लखनऊ

कोविड-19 के डर से लोगों को डेंटल क्लिनिकों से हुए दूर ,अब झेलनी पड़ रही परेशानी, पढ़िए पूरी रिपोर्ट

दंत चिकित्सकों के पास आने वाले मरीजों की संख्या में भारी कमी के कारण दांतों से संबंधित समस्याओं में काफी बढ़ोतरी हुई है।

लखनऊFeb 05, 2021 / 04:29 pm

Ritesh Singh

कोविड-19 के डर से लोगों को डेंटल क्लिनिकों से हुए दूर ,अब झेलनी पड़ रही परेशानी, पढ़िए पूरी रिपोर्ट

कोविड-19 के डर से लोगों को डेंटल क्लिनिकों से हुए दूर ,अब झेलनी पड़ रही परेशानी, पढ़िए पूरी रिपोर्ट

लखनऊ , कोविड-19 महामारी ने हमारी कई दैनिक गतिविधियों पर पाबंदी,रोक लगा दी थी, जिसमें नियमित रूप से दंत चिकित्सक के पास जाना भी सम्मिलित था। जब महामारी का प्रसार चरम पर पहुंच गया था, तब स्वास्थ्य अधिकारियों ने दंत चिकित्सा सेवाओं पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। डेंटल क्लिनिकों पर केवल आपातकालीन मामले ही देखे जा रहे थे, और बाकी मरीजों को सलाह दी गई थी कि वे नियमित जांच, दांतों की सफाई, फिलिंग (दांतों की भराई) आदि सहित उन समस्याओं के लिए प्रतीक्षा करें, जिनका उपचार कराना तुरंत जरूरी नहीं है। इसके परिणामस्वरूप पूरे भारत में दांत और मसूड़ों की समस्याओं के उपचार के लिए दांतों के अस्पताल/क्लिनिक आने वाले मरीजों की संख्या में अत्यधिक कमी देखी गई।
मुंह के कैंसर (ओरल कैंसर)

क्लोव डेंटल के मुख्य क्लिनिकल अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. विमल अरोड़ा ने बताया भारत में ओरल हेल्थ (मुख संबंधी स्वास्थ्य) के डेटा/आंकड़ों के अनुसार, 10 में से 8 भारतीय दांतों की किसी न किसी बीमारी से पीड़ित हैं, जो स्पष्टरूप से यह दर्शाता है कि दांतों और मसूड़ों के स्वास्थ्य (मुख संबंधी स्वास्थ्य) की हमेशा अनदेखी की जाती है, कोविड-19 महामारी के पहले भी। हालांकि, इस महामारी के दौरान पिछले दस महीनों में लोग दंत चिकित्सक के पास गए ही नहीं, जिससे उनकी दांतों से संबंधित मामूसी समस्याएं, गंभीर हो गई। जैसे जिनके दांतों में कैविटी हो गई थी, उसका उपचार सामान्य फिलिंग से हो सकता था, लेकिन अब आरसीटी और कैप लगाने की जरूरत पड़ेगी। कुछ गंभीर मामलों में दांत भी निकालने पड़ सकते हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, वर्तमान में (2019 के आंकड़े) हमारे देश की 60 प्रतिशत व्यस्क जनसंख्या और 70 प्रतिशत स्कूल जाने वाले बच्चों के दांत सड़ रहे हैं या उनमें कैविटी हो गई है। और 85 प्रतिशत जनसंख्या पीरियोडोंटल डिसीज़ (मसूड़ों से संबंधित एक रोग, जिसमें दांतों के आसपास के उतक संक्रमित हो जाते हैं) से प्रभावित हैं। हमारे देश को मुंह के कैंसर (ओरल कैंसर) की वैश्विक राजधानी माना जाता है। मानव शरीर में जितने भी प्रकार के कैंसर पनपते हैं, उनमें से 30 प्रतिशत से भी अधिक मुंह के कैंसर (ओरल कैंसर) होते हैं।”
दंत देखभाल में गिरावट

लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा पूरे भारत में दंत रोगियों के उपचार के लिए अस्पताल या क्लिनिक जाने में काफी कमी आई थी, जिसका बोझ मरीजों पर ही पड़ेगा, क्योंकि अब उन्हें उपचार के लिए अधिक खर्च करना पड़ेगा और दर्द भी अधिक सहना होगा। देश के विभिन्न शहरों में स्थित क्लोव क्लिनिकों में हर महीने लगभग 45 हजार मरीज (कोविड-19 के पहले) आते थे, जो 2020 के उन महीनों (कोविड-19 महामारी के दौरान) में घटकर केवल/मात्र 20 प्रतिशत रह गए थे। पूरे भारत के आंकड़ों से पता चलता है कि जून 2020 में (महामारी की पहली तिमाही के दौरान), देशभर में 9,549 मरीज क्लिनिक आए, जो जून 2019 के 45,979 की तुलना में काफी कम थे। इसी तरह, जुलाई 2020 में, यह संख्या 13,784 और अक्टुबर 2020 में 23,591 थी। अक्टुबर-दिसंबर 2020 की तिमाही में देशभर में क्लिनिक आने वाले मरीजों की संख्या में क्रमिक वृद्धि देखी गई।
दक्षिण पश्चिम भारत के क्लोव डेंटल के महाप्रबंधक डॉ. अनिरूद्ध सिंह ने कहा परंपरागत रूप से हर छह महीने में डेंटल चेकअप की सलाह दी जाती है। लेकिन, लोग अक्सर इसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिससे दांतों की समस्याओं की गंभीरता बढ़ जाती है, जिसके लिए मंहगे उपचारों और विशेष देखभाल की जरूरत होती है। राष्ट्रीय मौखिक स्वास्थ्य नीति के मसौदे/प्रारूप के अनुसार, स्थायी दांतों की सड़न या उनमें कैविटी बन जाना और गंभीर पीरियोडोंटाइटिस के मामले दांतों की दूसरी समस्याओं की तुलना में काफी अधिक देखे जाते हैं। फिर भी, केवल 12.4 प्रतिशत व्यस्कों ने ही कभी अपने मुंह की जांच किसी दंत चिकित्सक से कराई है। नियमित रूप से जांच कराना, निवारक उपचारों का एक भाग है। हालांकि, कोविड-19 के कारण निवारक उपचारों में 63.7 प्रतिशत की कमी आई है, क्योंकि मरीज क्लिनिकों तक आये ही नहीं। जैसा कि स्पष्ट है, कोविड-19 उपचार में देरी का कारण बना, अब स्थितियां नियंत्रण में हैं, इसलिए उपचार को अब फिर से पहले वाले स्तर पर लाना है। अतः, दंत चिकित्सा सेवाओं को अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के समान प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है।
कोविड-19 के प्रसार से संबंधित डेंटल क्लिनिकों की सुरक्षा पर बोलते हुए लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा ने कहा पिछले नौ महीनों के दौरान क्लोव क्लिनिक सबसे सुरक्षित रहे हैं, हमारे डॉक्टरों ने क्लिनिकों द्वारा अपनायी गयी रोगाणुनाशन (डिसइंफेक्शन) और विसंक्रमण (स्टरलाइज़ेशन) प्रक्रियाओं पर पूरी तरह भरोसा किया और इसीलिए उन्होंने क्लोव डेंटल क्लिनिकों में काम करते हुए सुरक्षित महसूस किया। इसके अलावा, वे अपने मरीजों में भी इस विश्वास को सुदृढ़ कर पाए की क्लिनिक उनके लिए सुरक्षित हैं, क्योंकि यहां सभी निवारक उपाय अपनाए गए हैं। क्लोव क्लिनिक पर आए मरीजों (160 प्रतिक्रियाओं) के बीच किये गये सर्वे में, 98.8 मरीजों ने महामारी के दौरान क्लोव क्लिनिकों में अपनी विजिट को पूरी तरह से सुरक्षित महसूस किया।
मुंह से संबंधित बीमारियों (ओरल डिसीज़ेज) के वैश्विक बोझ से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए आधारभूत रूप से एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मुंह से संबंधित बीमारियों से जुड़ी जन स्वास्थ्य समस्याएं विश्वभर के हर देश में एक गंभीर बोझ हैं। जो कमी है, वह है, इन बीमारियों के बारे में जागरूकता की और इस जानकारी की, कि मुंह का खराब स्वास्थ्य शरीर को क्या नुकसान पहुंचा सकता है। उत्कृष्ट दंत स्वास्थ्य समग्र शरीर के स्वास्थ्य के लिए प्रवेश द्वार है; यही सच्चा नारा है।
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