मैं समझ सकती हूं मां, बचपन तुम्हारा भी किसी दरिंदे ने छीन लिया। तुम्हारे सपनाें की भी हत्या हुई है। 12 साल की उम्र में तुमने भी अथाह तकलीक सही हैं। लेकिन मां फिर भी सवाल तुमसे ही करूंगी…
जब मुझे अपनाना नहीं था तो मुझे जन्म ही क्यूं दिया। तुम्हारे बिना आज नहीं तो कल मैं वैसे भी मर जाऊंगी, पर मेरी आत्मा तो अभी ही मर चुकी है मां। प्लीज मां, मुझे बताना जरूर मेरी क्या गलती है जो मुझे यूं ही बीच राह में मरने के लिए छोड़ दिया। सुना था ननिहाल में बच्चों को सबसे ज्यादा
प्यार मिलता है। लेकिन मैं इतनी बदनसीब हूं कि मेरी नानी को मेरी जिंदगी से ज्यादा समाजिक लोक-लाज का डर है। मां मेरे जन्म के बाद जैसे ही तुमने मुुझे नकारा मैं समझ गई थी कि मैंं गलत दुनिया में आ गई हूं। यहां इंसान नहीं, पत्थर के बुत बसते हैैं और पत्थरों में संवेदनाएं तो होती नहीं हैं।
हाड़-मांस के इंसान की संवेदनाएं हैं ताबूतों में कैद, इंसानियत जहां खत्म हो जाए वहां हर रंग लगता है स्याह चाहे हो कितना सफेद…. तुम्हारी गुड़िया दो दिन पहले की बात है। राजधानी लखनऊ के सुगापुर गांव की रहने वाली एक 12 साल की नाबालिग ने सदर अस्पताल में एक बच्ची को जन्म दिया। दुनिया उसे बच्ची को नाजायज कहती है, क्योंकि एक दरिंदे ने उसकी नाबालिग मां का बलात्कार किया था, जिसके नतीजे में वह कोख में आई। गुडिय़ा को जन्म देने वाली मां और रिश्तेदारों ने कबूल करने से इंकार कर दिया है। कौन गुडिया को पालेगा, कौन उसे अपनीछाती से चिपकाकर रखेगा। अगर गुडिय़ा बोल पाती तो पाती के इन्हीं जज्बातों को बयान करती..