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लखनऊ

एक था सुल्ताना डाकू जिस पर फिदा थी गोरी मैम

सुल्ताना डाकू पर फिदा थी एक खूबसूरत अंग्रेज महिला, लेकिन वह एक देशी मैम से प्रेम करता था…

लखनऊOct 15, 2018 / 06:31 pm

Hariom Dwivedi

Sultana Daku

एक था सुल्ताना डाकू जिस पर फिदा थी गोरी मैम

लखनऊ.100 साल पहले एक था सुल्ताना डाकू। इस पर फिदा थी खूबसूरत थी अंग्रेज महिला। लेकिन यह नामी डाकू गोरी मैम पर नहीं बल्कि एक महिला से प्रेम करता था। उसका नाम था फुलकनबाई। सुल्ताना डाकू की खासियत यह थी कि यह बड़े लोगों को और अंग्रेजों को ही लूटता था। अंग्रेजी सरकार का खजाना इसके निशाने पर होते थे। सुल्ताना के खौफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि उस जमाने में अंग्रेजों ने इस डकैत को पकड़ने के लिए 300 जवानों की टीम भी बनाई थी। इसमें आधुनिक हथियारों से सुसज्जित 50 घुड़सवारों का दस्ता भी शामिल था। तमाम कोशिशों के बाद इसे पकड़ा जा सकता था।
लखनऊ में गृह विभाग मे लाइब्रेरीनुमा एक छोटा सा विभाग है। जिसमें बहुत पुरानी फाइलें संरक्षित हैं। इन फाइलों के ढेर में अंग्रेजों के जमाने की भी तमाम फाइलें हैं। इन्हीं में एक फाइल है जो आज से लगभग 120 साल पहले इतिहास से जुड़ी है। इस फाइल में जिक्र है मुरादाबाद के हरथला गांव के दुर्दांत डाकू सुल्ताना का। यह 17 साल की उम्र में ही डकैत बन गया। 22 साल की जवानी आते-आते तो इसका इतना खौफ हो गया कि इसके नाम से ही लोग डर जाते थे। इस खुंखार दस्यु ने तब अंग्रेजों की नाम में दम कर रखा था। यह अंग्रेजों का सामान लूट लेता था। इसका स्थानीय ग्रामीणों में बहुत सम्मान था। यानी यह तमाम लोगों के लिए रॉबिनहुड था। इसके भी घोड़े का नाम चेतक था जो हवा के समान तेज दौड़ता था।
सुल्ताना डाकू की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसकी बहादुरी और गरीबों की मदद से प्रभावित होकर एक युवा अंग्रेज महिला इसको दिल दे बैठी। वह इससे अथाह प्यार करती थी। लेकिन सुल्ताना का दिल कभी गोरी मैम के लिए धडक़ा ही नहीं। यह बात 1920 के दशक की है। तब मुस्लिम भाटू कबीले में जन्में इस बदसूरत से दिखने वाले आदमी को पाने के लिए अंग्रेज मैम ने तमाम सिफारिशें भी लगवाईं लेकिन सुल्ताना का दिल नहीं पिघला। वजह यह थी कि सुल्ताना का दिल तो फुलकनवार्न या पुतलीबाई नाम की एक डांसर के लिए करने धड़कता था।
100 डकैतों की गैंग
सुल्ताना की गैंग में करीब 100 डकैतों का समूह शामिल था। सुल्ताना हमेशा अंग्रेजों और अंग्रेजी हुकूमता का ही खजाना लूटता था। इसलिए इसकी गरीबों में बहुत लोकप्रियता थी। नजीबाबाद के इलाके में तो सुल्ताना डाकू ग्रामीणों में भगवान की तरह पूजा जाता था। धनी अंग्रेजों को तब एक ठिकाना नैनीताल भी था। इस रास्ते में अंग्रेजों के काफिले को सुल्ताना अपना निशाना बनाता था और नजीबाबाद के जंगलों में छिप जाता था। सुल्ताना ने कई बार माल से लदी रेलगाडिय़ों को भी लूटा था। हल्द्वानी के जमींदार खडक़ सिंह को लूटने के बाद जमींदार सुल्ताना के खिलाऊ हो गया। और वह अंग्रेजों के साथ मिल गया। इसके बाद अंग्रेज अफसर फ्रैडी यंग और शिकारी जेम्स जिम कार्बेट ने मिलकर सुल्ताना डाकू को पकड़ लिया। बाद में यंग सुल्ताना की बहादुरी से इतना प्रभावित हुआ कि वह सुल्ताना के बेटे को पढऩे के लिए इंग्लैंड भेज दिया। 7 जुलाई, 1924 को सुल्ताना और इसके 15 अन्य साथियों के साथ आगरा की जेल में फांसी फांसी पर लटका दिया गया। बाद में सुल्ताना डाकू पर नौटंकी और नाटक खेले गए। सुलताना डाकू पर एक फिल्म भी बनाई गई जिसमें दारा सिहं ने सुलताना का किरदार निभाया था।
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