यूपीएसआईसी द्वारा सरकार के विभिन्न विभागों में अलग अलग पदों पर करीब 50 हजार लोगों की भर्तियां करनी थीं। जिन प्रमुख स्थानों पर भर्तियां होनी थीं उनमें राजस्व परिषद में करीब 4000 चपरासी, स्वास्थ्य विभाग में 5000 हजार चतुर्थ श्रेणी, सहायता प्राप्त विद्यालयों में 12000 चपरासी, मेडिकल कालेजों में करीब 2000 चपरासी, स्वास्थ्य विभाग में पेरामेडिकल स्टाफ के रूप में करीब 1000 और राज्य सरकार के माध्यमिक विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी के 3000 कर्मचारियों की मोटे तौर पर भॢतयां की जानी थीं। इनके अलावा अन्य विभागों में 200 से 600 तक कर्मचारियों की अलग अलग जरूरत के हिसाब से भर्ती की व्यवस्था करनी थी। ये सारा काम सेवा प्रदाता संस्था द्वारा किया जाना था।
यूपीएसआईसी के अधिकारी चाहते थे कि इनमें से अधिकांश भर्तियों का काम उनकी मनचाही संस्था को मिले, लेकिन वह संस्था पंजीकृत नहीं थी। पंजीकरण की कार्यवाही में समय लग रहा था तो वे दूसरी पंजीकृत संस्थाओं की भर्तियां भी नहीं होने दे रहे थे। इस पर शासन उन्हें पत्र लिखकर कहा कि भर्तियां क्यों नहीं हो रही हैं। इस पर उन्होंने सभी पंजीकृत एजेंसियों की जांच करानी शुरू कर दी और रिपोर्ट भेज दी कि उनकी जांच चल रही है इसलिए अभी उनसे भर्ती नहीं कराई जा सकती। अधिकारी की इस टाला मटोली में एक साल लग गए। और पचास हजार बेरोजगारों को रोजगार न मिल सका।
अपना पूरा नाम न लिखने वाले इन अफसर को सरकार ने और अच्छी पोस्टिंग देकर नवाजा है। उन्हें यूपीएसआईसी से तो हटा दिया गया है, लेकिन उन्हें बहुत अच्छी पोस्टिंग दी गई है। इससे विभागीय अधिकारियों में नाराजगी भी है। दूसरी ओर वे अपने नजदीकी की एजेंसी को काम दिलाने के लिए उसे पंजीकृत करने की पूरी कार्रवाई कर आए हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के विशेष सचिव ने बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगगम को इस सम्बन्ध में कई बार पत्र भी लिखा और सम्बन्धित अधिकारियों से बात भी की, लेकिन हर बार उनका लिखित जवाब ऐसा आता था जिससे मामला और उलझ जाता था। शासन ने पूरे प्ररकरण पर कार्यवाही तलब की है।