प्रदेश में 4 बार सरकार बना चुकी सपा 2014 से लगातार विधानसभा और लोकसभा का चुनाव हार रही है। इसकी बड़ी वजह ये रही है कि प्रदेश में 52% आबादी पिछड़े समाज की है। इनमें करीब 12% आबादी यादवों की है, जिन्हें सपा का मूल वोटर माना जाता है। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा के कई बड़े गैर यादव OBC नेता BJP में शामिल हो गए थे।
इसके अलावा 40% गैर यादव OBC वोटर 2014 से BJP को वोट करते आ रहे हैं। इस बात को ध्यान में रख कर वह इन नेताओं को वापस अपने पाले में लाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही वह इन नेताओं को पार्टी संगठन और चुनाव में अहम जिम्मेदारी देने का मन बना चुके हैं।
केंद्र व राज्य की सत्ता पर राज कर रही BJP हमेशा से सपा को हिंदु विरोधी बताती आई है। BJP अक्सर अखिलेश यादव पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाती रही हैं। इसको काउंटर करने के लिए सपा प्रमुख पिछले 2021 से मंंदिरों में जा पूजा भी कर रहे हैं। वह लोगों को यह बताना चाहते हैं कि उनकी पार्टी समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चल रही है।
इसका उदाहरण उस वक्त भी देखने को मिला, जब अखिलेश यादव अपनी पार्टी की बैठक में शामिल होने के लिए कोलकाता पहुंचे। वहां उन्होंने काली मां के दर्शन करने के साथ ही इस्कॉन जाकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की। सपा प्रमुख अपने सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति से BJP के हार्डकोर हिंदुत्व की राजनीति को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं।
लोकसभा चुनावों में अपने गढ़ में हारी सीटों को फिर से जीतकर अपना गढ़ बचाना चाहती हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक सपा उन सीटों पर ज्यादा फोकस कर रही हैं, जिनपर 2014 से पहले वह लगातार चुनाव जीत रही थी। इसके साथ ही सपा सभी सीटों पर जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर प्रत्याशी उतारना चाहती है। इसके लिए पार्टी ने अपने पुराने काडर को फिर से अहम जिम्मेदारी देगी।
सपा प्रमुख लोकसभा चुनाव में अपनी जातीय जनगणना की मांग को मुद्दा बनाने की कोशिश करेंगे। बता दें कि अखिलेश यादव कई मौके पर राज्य व केंद्र सरकार से जातीगत जनगणना की मांग कर चुके है। 22 जनवरी को जनेश्वर मिश्रा की पुण्यतिथी पर उन्होंने कहा था, “जब बिहार जातीगत जनगणना करा सकता हैं। तो हम तो क्यों नहीं करा सकते? हम बिहार से तो कई मामलों में बेहतर हैं। प्रदेश में जैसे ही सपा की सरकार बनेगी हम सबसे पहले जातीगत जनगणना कराएंगे।”
सपा प्रमुख पिछले 2 चुनावों से परिवार को दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं। इसका बड़ा उदाहरण 2022 के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला। जब अखिलेश यादव ने परिवार से सिर्फ जसवंत नगर से विधायक शिवपाल सिंह यादव को टिकट दिया। वह भी तब जब उनकी पार्टी प्रगतीशील समाजवादी पार्टी ने सपा से गठबंधन किया। इसके अलावा उन्होंने परिवार से किसी को टिकट नहीं दिया।
उत्तर प्रदेश में 5 साल सरकार चलाने के बाद सपा प्रमुख ने 2017 के चुनावों में कांग्रेस से गठबंधन किया। इस चुनाव में पार्टी गठबंधन के बावजूद बुरी तरह से हारी और 403 के विधानसभा सीटों वाली विधानसभा में महज 47 सीटों पर सिमट के रह गई।
इसके बाद 2019 के लोरकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया और 80 में से 5 सिटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। इन सबसे सबक लेते हुए सपा प्रमुख ने 2022 के विधानसभा चुनाव में छोटी-छोटी पार्टियों से गठबंधन किया। और 100 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कीया। इसके बाद से ही सपा ने आगामी चुनावों में बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला किया हैं।
राजनीति के जानकार बताते है कि सपा प्रमुख अब किसी बड़ी पार्टी के पास गठबंधन के लिए खुद से नहीं जाएंगे। अगर कोई बड़ी पार्टी उनके पास गठबंधन के लिए आती हैं। तो उस समय वह अपने शर्तों पर गठबंधन करेंगे। इसका इशारा वह कई बार दें चुके हैं।