scriptप्रयाग की अब नई पहचान मूंज कला, मुख्यमंत्री ने किया उद्घाटन | yogi adityanath launched one district one product scheme in up | Patrika News
लखनऊ

प्रयाग की अब नई पहचान मूंज कला, मुख्यमंत्री ने किया उद्घाटन

एक जिला, एक उत्पाद – कारीगरों में जगी नई उम्मीद, महिलाओं का हुनर बनेगा रोजगार का जरिया

लखनऊJan 25, 2018 / 02:20 pm

Mahendra Pratap

up divas

रेखा सिनहा

लखनऊ. धार्मिक नगरी प्रयाग के नक्शे पर एक नई पहचान जुड़ रही है। वर्षों से यमुनापार इलाके में छिपी इस पहचान को सांसें देने वाले लोगों के चेहरे खिल गये हैं। गांवों की गरीब महिलाओं के हाथों के हुनर से यमुना किनारे का सरपत खूबसूरत मूंज कलाकृति में बदल जाता है। ऐसी तमाम महिलाएं हैं जो आज तक अपनी इस कला को दम तोडऩे से बचाये हुए हैं, अब उनके जीवन में उम्मीद का नया सूरज उग रहा है। ये एक दिन में नहीं हो रहा है। इसका श्रेय उन छोटे-छोटे प्रयासों को जाता है, जो पिछले एक दशक में आईआईटी, एनआईडी बेंगलुरू, मानव संसाधन मंत्रालय से जुड़े कई अन्य संगठनों, डिजाइनर, शिक्षाविद, शोधकर्ता, कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किए हैं। इन सबसे ज्यादा उन अनाम कलाकारों,कारीगरों को जिन्होंने कम दाम मिलने के बाद भी इस कला को छोड़ा नहीं।

मुख्यमंत्री ने किया योजना का शुभारंभ

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को अवध शिल्प ग्राम में उत्तरप्रदेश दिवस के प्रथम समारोह में एक जिला-एक उत्पाद की लांचिंग की। इसी के तहत इलाहाबाद से मूंज क्राफ्ट को चुना गया है। प्रदेश के सभी जिलों से एक क्राफ्ट को चुना गया। इलाहाबाद की मूंज कला को चुना जाना इसलिए अन्य जनपदों से अलग है क्योंकि, पहली बार इतने व्यापक स्तर पर इस कला को मान्यता मिल रही है। अब तक वृहद स्तर पर इस कला के लिए कुछ खास नहीं किया गया।

 

up divas

इलाहाबाद की मूंज कला

सच तो यह है कि उत्तरप्रदेश के हर जिले के गांवों में मूंज कला की जड़ें गहरी हैं। बेटियों को शादी में उपहार के तौर पर मूंज के पिटारे, डलिया, बेना आदि देने का रिवाज पहले आम था। इन उपहारों से लडक़ी की कलाप्रियता और हुनर की सराहना होती थी। हर जिले की मूंज कला के सामानों के आकार और मोटिफ में थोड़ा-बहुत अन्तर होता था। गांव की महिलाएं खाली समय में मूंज के बड़े-बड़े डलवे, ढक्कनदार पिटारे, कोरई, डलिया आदि बनाती थीं, जो घर में इस्तेमाल होते थे। लेकिन, समय के साथ इनकी जगह प्लास्टिक से बने सामानों ने ले ली। अब कुछ जिलों में ही महिलाएं मूंज का सामान बनाती नजर आती हैं। पर्यावरण को बचाये रखने के लिए इस कला को पूरे प्रदेश में बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि ग्रामीण महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिले और पर्यावरण भी सुरक्षित रहे। लेकिन इलाहाबाद की मंूज कला का देश में अलग ही स्थान है।

दो दिन की मेहनत में तैयार होता है पिटारा

मूंज कला के मामले में इलाहाबाद अन्य जिलों से अलग है। क्योंकि यहां मूंज के सामान ब्रिकी के लिए बनाये जाते हैं। खासकर यमुनापार का नैनी क्षेत्र इसका गढ़ है। पहले महेवा व आसपास के कई गांवों में महिलाओं की पूरी दोपहर इसी काम को करने में बीतती थी। कुछ पुरुष भी मूंज का सामान बनाने का काम करते थे। दस साल पहले इस काम से लोगों का मोहभंग होने लगा। वजह थी काम का सही दाम न मिलना। दो-तीन दिन की मेहनत के बाद एक पिटारा तैयार होता है। इलाहाबाद शहर के बाजार के दुकानदार इसके लिए 80-90 रुपये देते। कुछ सामान के तो केवल 40-50 रुपये ही मिलते। जो अपना सामान लेकर खुद संगम या आनन्द भवन के पास बेचने जाते उन्हें थोड़ा बेहतर कीमत मिल जाती थी। लेकिन ऐसा करना सबके बस की बात नहीं थी।

 

up divas

मुस्लिम महिलाओं का विशेष योगदान

इस कला को अपनाने में मुस्लिम महिलाएं आगे रहीं। दो दशक पहले उनके बीच के कुछ लोग कमाने खाड़ी देशों को गये। वे अपने साथ मूंज के कुछ सामान भी ले गये थे। शायद उन्हें भी उम्मीद नहीं थी कि वहां उनकी कला के कद्रदान मिल जाएंगे। उनके माध्यम से महेवा की महिलाओं को काफी काम और दाम मिला। कई परिवारों की महिलाओं ने मूंज कला से कमाये पैसे से कच्चे की जगह पक्के मकान बनवा लिए और बच्चों को पढऩे भेजा। महेवा पश्चिम की श्रीमती साधिका ने मूंज का काम कर अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलाई।

बदहाली के बाद सुनहरा दौर

20 साल पहले मूंज कला का वह सुनहरा दौर था लेकिन बाद के वर्षों में ये कायम नहीं रह पाया। जिनके माध्यम से मूंज का सामान खाड़ी देशों को जाता था, उनका इंतकाल हो गया। फिर शुरू हुआ बदहाली का दौर। अब से दस साल पहले ये स्थिति आ गयी कि लोग मूंज का काम छोडऩे लगे। साधिका बहुत दुखी हो कर कहती हैं कि लगने लगा था 20-25 साल में महेवा से मूंज कला खत्म हो जाएगी। रस्मअदायगी के तौर कुछ काम होता रहा, जिसके खरीदार भी स्थानीय लोग ही थे। इत्तेफाक से एनआईडी बेंगलुरू और कुछ अन्य डिजाइन इंस्टीट्यूट के अध्येताओं और शोधकर्ताओं ने इस ओर रुख किया। उनके आने से यहां फिर रौनक लौटने लगी। कई सामाजिक संस्थाओं ने यहां प्रशिक्षण के कार्यक्रम किये। आईआईटी कानपुर की विशेषज्ञ कौमुदी पाटिल व उनकी टीम और आईआईटी के इनीशियेटिव “युक्ति” ने इस कला में फिर से जीवन भरने की दिशा में काम किया।

 

up divas

कला का हुआ डाकूमेंटेशन

प्रो. बिभुदत्ता बराल, कौमुदी पाटिल, जे. एंटोनी विलियम, अनुश्री कुमार, अमृतालक्ष्मी राजगोपाल, अनीशा क्रेस्टो, शिवानी शरण आदि ने अपने-अपने तरीके से इस कला का डाक्यूमेंटेशन किया और बाहरी दुनिया को इस कला से परिचित कराया। रेखाकृति की रेखा सिनहा ने पिछले पांच वर्षों में इस कला के कारीगरों को संगठित कर उन्हें सालभर काम दिलाने की दिशा में काम किया। लेकिन कई तरह की बाधाएं आती रहीं।

लखनऊ में लगी है प्रदर्शनी

मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी एक जिला-एक उत्पाद योजना की मंजूरी के बाद इन बाधाओं के दूर होने की उम्मीद फिर बलवती हो गई है। उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन निदेशालय (कानपुर), उद्योग परिक्षेत्रीय कार्यालय (इलाहाबाद मण्डल)और जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केन्द्र इलाहाबाद की टीम ने जिस तरह ग्राउण्ड वर्क कर मूंज कारीगरों को जोडऩा शुरू किया है, वह भविष्य के लिए अच्छा संकेत है। अवध शिल्प ग्राम के क्राफ्ट कोर्ट में जहां अबसार और उनके साथियों को इस कला का डिमांस्ट्रेशन करते हुए देखा जा सकता है, वहीं शॉप नम्बर 60 में सुश्री चांद अपने व साथियों के बनाये मूंज के परम्परागत और इनोवेटिव उत्पादों की प्रदर्शनी सह बिक्री के लिए उत्साहित हैं। फिलहाल, यूपी दिवस समारोह और लखनऊ महोत्सव के मौके पर 7 फरवरी तक यह प्रदर्शनी रहेगी। फिर पूरे साल अलग-अलग मूंज कारीगरों को बारी-बारी यहां अपने उत्पाद प्रदर्शित करने का मौका दिया जाएगा।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार, सोशल एक्टिविस्ट और सोशल एंटरप्रेन्योर हैं। उत्तरप्रदेश की लुप्त होती कलाओं के संरक्षण और संवद्र्धन के लिए काम कर रही हैं)

up divas

Home / Lucknow / प्रयाग की अब नई पहचान मूंज कला, मुख्यमंत्री ने किया उद्घाटन

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो