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लुधियाना

पंजाब की 80 फ़ीसदी इंडस्ट्री चीन के कच्चे माल पर निर्भर, कैसे कर सकते हैं बायकाट

लुधियाना और जालंधर के उद्यमियों ने बताया कि कैसे कर सकते हैं चीन को बीट

लुधियानाJun 23, 2020 / 07:17 pm

Bhanu Pratap

Boycott of chinese goods

Boycott of chinese goods

लुधियाना/जालंधर। पंजाब की 80 फ़ीसदी इंडस्ट्री चीन की कच्चे माल पर निर्भर है। यह निर्भरता खत्म हो सकती है लेकिन इसके लिए हमारी इंडस्ट्री को आत्मनिर्भर बनाना होगा। हमारी इंडस्ट्री तो अभी इतनी भी आत्मनिर्भर नहीं कि अपने मजदूरों का भी पेट पाल सके, फिर चीन का मुकाबला क्या करेंगे। इस समय पूरा देश चीन के माल के बहिष्कार का आह्वान कर रहा है पर हकीकत में यह नहीं हो सकता। अगर करना है तो हमारी सरकारों को, हमें और हमारी इंडस्ट्री को आत्मनिर्भर बनाना होगा। हम चीन से सस्ता माल तैयार करें और आपने बाजार में बेचें।
रमेश गुप्ता

यह कहना है जालंधर के फोकल प्वाइंट में वाल्व कप इंडस्ट्री चलाने वाले रमेश गुप्ता का। रमेश गुप्ता ने कहा कि 2008 में मैं पहले चीन से सिर्फ कच्चे माल के रूप में पीतल इंपोर्ट किया करता था। उससे मैं अपनी फैक्ट्री में वाल्व कप तैयार करता था पर 2010 में चीनी व कार्यों ने मेरे समक्ष एक पेशकश रखी कि आप पीतल की जगह पीतल के रेट पर तैयार माल ले लिया करो। मुझे ऑफर अच्छा लगा। मैंने काम शुरू कर दिया और अच्छा मुनाफा कमाया, फिर से ट्रेडर बन गया।
इंदर धीर

जालंधर खेल संघ के इंदर धीर कहते हैं- स्पोर्ट्स गुड्स तैयार करने के लिए चीन और ताइवान से कच्चा माल आता था और हम यहां पर उस कच्चे माल से कई चीजें प्यार करते थे। चीन की कंपनियों ने हमें कच्चे माल के रेट पर बना बनाया माल देने की ऑफर की, जिसमें फुटबॉल, जूते, वॉलीबॉल, जाल और कई तरह के खेल के समान जिससे हमारा उत्पादन शुल्क खत्म हो गया और हमें आधी कीमत पर सामान मिलने लगा। आज हम इंडस्ट्रीज से ट्रेडर बन चुके हैं। अगर केंद्र सरकार और पंजाब सरकार हमें इस तरह की कोई ऑफर देती है तो हम चाइनीद माल छोड़कर भारतीय माल तैयार करेंगे और उसे लोगों तक पहुंचाएंगे
गुरबख्श सिंह

लुधियाना होलसेल मार्केट के एक दुकानदार गुरबख्श सिंह ने बताया कि चीन का माल दो तरीके से बाजार में आता है। पहला माल इंडस्ट्री के लोग इंपोर्ट करके होलसेल में बेचते हैं। दूसरा माल बाजारों के जरिए जैसे दिल्ली बाजार और फरीदाबाद बाजार और चाइना बाजार के नाम से अलग-अलग शहरों में लगता है और वहां चीनी माल की खपत होती है। वह छोटा सा उदाहरण देते हैं- एक चाइनीज इयरफोन की कीमत लुधियाना तक पहुंचने में 30 से ₹35 के बीच में आती है। वह यहां पर तीन गुना दाम पर बेचा जाता है। चाइनीस माल का एक कंटेनर लेना है तो उसके लिए डेढ़ सौ करोड़ रुपये की लागत लगती है। अगर यही माल भारत में तैयार किया जाए तो आम जनता को बहुत सस्ता मिलेगा। वे बतते हैं कि पंजाब में हर महीने 300 करोड़ रूपये के चीनी माल की खपत हो रही है, जिसमें करीब 180 कंटेनर हर महीने लुधियाना की खुश्क बंदरगाह पर उतरते हैं। जालंधर स्पोर्ट्स गुड्स का मेरठ के बाद सबसे बड़ा उत्पादन का केंद्र है। उसके बाल लुधियाना हौजरी के लिए और साइकिल इंडस्ट्री के लिए माना जाता है। यहां भी चाइना के माल का ही बोलबाला है। इसलिए अगर हमें चाइना के माल को खत्म करना है तो उससे एक कदम आगे चलते हुए इंडस्ट्री को राहत देखकर इंडस्ट्री को भरना होगा तभी हम चाइना को बीट कर पाएंगे।

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