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मधुबनी

बिहार के मजदूर वापस जाना चाहते हैं, दूसरे राज्यों में

( Bihar News ) देश में कोरोना ( Corona ) महामारी के बीच जहां मजदूर चाहे जैसे भी हो अपने घरों को वापस जा रहे हैं, वहीं बिहार में इसका उल्टा हो ( Lock down ) रहा है। बिहार से पलायन कर चुके प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के साथ रिवर्स माइग्रेशन ( Reverse migration ) में तेजी आने लगी है। इससे बिहार के ( Unemployment in Bihar ) हालात पर सवाल भी उठने लगे हैं।

मधुबनीMay 09, 2020 / 06:59 pm

Yogendra Yogi

बिहार के मजदूर वापस जाना चाहते हैं, दूसरे राज्यों में

बिहार के मजदूर वापस जाना चाहते हैं, दूसरे राज्यों में

मधुबनी(बिहार)प्रियरंजन भारती: ( Bihar News ) देश में कोरोना ( Corona ) महामारी के बीच जहां मजदूर चाहे जैसे भी हो अपने घरों को वापस जा रहे हैं, वापसी के लिए धरने-प्रदर्शन तक किए जा रहे हैं। साधन नहीं मिले तो पैदल ही सैकड़ों-हजारों किलोमीटर की दूरी तय करने से भी उन्हें गुरेज नहीं है। बस किसी हालत में जाना अपने घर वापस है। वहीं बिहार में इसका उल्टा हो रहा है। कोरोना महामारी के बीच बिहार से पलायन कर चुके प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के साथ रिवर्स माइग्रेशन ( Reverse migration ) में तेजी आने लगी है। इससे बिहार के ( Unemployment in Bihar ) हालात पर सवाल भी उठने लगे हैं। सवाल यही कि ( Lock down ) आखिर किन विवशताएं में सूबे से रिवर्स माइग्रेशन होने लगा।

खगडिय़ा से वापस तेलंगाना गए मजदूर
गुरुवार को खगडिय़ा से 222 मजदूर विशेष ट्रेन से तेलंगाना के लिंगमपल्ली राइस मिल में काम के लिए वापस चले गये। अब मधुबनी के हजारों मजदूर काम के लिए पंजाब और दूसरे प्रांतों में जाना चाहते हैं। बिस्फी क्षेत्र के रामप्रीत साव का कहना है कि बिहार में रहकर क्या करेंगे? यहां काम तो कोई मिलेगा नहीं। यही सवाल बहुतेरों का है। इन्हें लगता है कि बिहार में रहकर कुछ कर पाना संभव नहीं है। भरण पोषण के लिए हारकर इन्हें दूसरे राज्यों में जाना ही पड़ जाता है।

विपक्ष ने उठाए सवाल
विपक्ष ने रिवर्स माइग्रेशन पर सरकार से सवाल खड़े किए। विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यह सरकार की सरासर विफलता है। यह पंद्रह वर्षों की सरकार के कामकाज का आईना है कि मजदूर यहां लौटकर भी वापस जाने को मजबूर हो गए हैं। जवाब में सत्तारूढ़ जदयू का आरोप है कि आरजेडी को अपना गिरेबान झांक कर देखना चाहिए। बिहार से पलायन आरजेडी और कांग्रेस की देन है। विपक्ष की सरकारों के दौरान सूबे से लोगों का भरण पोषण के लिए बड़ी संख्या में पलायन होता रहा और सरकार चुपचाप बैठी रही।

करीब 50 लाख बिहारी मजदूर हैं बाहर
बिहार छोड़ दूसरे प्रदेशों में जा चुके मजदूरों का कोई आंकड़ा अद्यतन सरकार के पास नहीं है। सरकार मानती है कि करीब 35-40 लाख मजदूर पलायन कर बाहर गए हैं। आईपीएल के सर्वेक्षण के अनुसार यह संख्या 50 लाख से अधिक है। बाहर गए मजदूरों में सात जिलों की सर्वाधिक आबादी है। इनमें मधुबनी भी शामिल हैं। सर्वाधिक पलायन वाले जिलों में गोपालगंज और मधुबनी से 71 प्रतिशत, अररिया 53.2 प्रतिशत, पूर्णियां 48.2 प्रतिशत, शिवहर 47.1, मुंगेर, गया 44.8 प्रतिशत है। इनमें भरण-पोषण के लिए 64 प्रतिशत जबकि बेहतर जीवन के लिए 29 प्रतिशत का पलायन हुआ है।

इसलिए हुआ पलायन
बिहार से पलायन की कहानी बहुत पुरानी और त्रासद है। आजादी के बाद पलायन की रफ्तार हमेशा बढ़ती ही गई। बाढ़ और सूखे से यहां की खेती चौपट हो जाना इसकी बड़ी वजह है। उत्तर बिहार में खासकर कोसी और मिथिलांचल के इलाके हर साल बारिश में जलमग्न हो जाते हैं। बाढ़ की विनाशलीला के बाद इन क्षेत्रों में खाने के लाले पड़ जाते हैं। गरीब और असहाय परिवारों के भरण पोषण का संकट खड़ा हो जाता है।

बाढ़ की समस्या का हल नहीं
हर वर्ष बाढ़ राहत के नाम पर महज़ सरकारी संसाधनों की लूट खसोट होती रही है। सरकार की अदूरदर्शिता और समस्याओं के हल नहीं होने के चलते लाचार आबादी भरण पोषण के लिए दूसरे प्रांतों में काम की तलाश में पलायन करने पर मजबूर हो जाती है। शहरीकरण और उदारीकरण ने भी बिहार से पलायन को भरसक बढ़ावा दिया है। रोजगार और काम के अवसर नहीं होने से पलायन को और बढ़ावा मिलता है।

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