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महोबा

आंखों की रोशनी न होने के बावजूद प्रियांक लॉकडाउन में कर रहा सैकड़ों की सेवा, पहुंचा रहा भोजन

लाॅकडाउन में जरूरतमंदों की पीड़ा दूर करने के लिए नेत्रहीन प्रियांक सक्सेना आगे आए हैं। वह गरीब व असहाय लोगों को रोजाना भोजन बांट रहे हैं।

महोबाApr 10, 2020 / 09:42 pm

Abhishek Gupta

Mahoba news

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फर्रुखाबाद. लाॅकडाउन में जरूरतमंदों की पीड़ा दूर करने के लिए नेत्रहीन प्रियांक सक्सेना आगे आए हैं। वह गरीब व असहाय लोगों को रोजाना भोजन बांट रहे हैं। भोजन का सारा खर्च उठाने वाले प्रियांक की मदद उनके रिश्तेदार व पड़ोसी भी कर रहे हैं। जरूरतमंदों की सेवा कर वह लोगों में प्रेरणा का उदाहरण पेश कर रहे हैं। कोरोना महामारी को लेकर उत्पन्न संकट में वैसे तो मददगारों की लंबी फौज खड़ी हो गई है। कोई भोजन तो कोई खाद्यान्न पहुंचा रहे हैं। स्थिति यह है कि मददगारों की दरियादिली से हजारों जरूरतमंदों को भोजन पानी मिल रहा है, लेकिन इन सबके बीच रेलवे रोड निवासी 30 वर्षीय प्रियांक सक्सेना उर्फ चिंटू नेत्रहीन होने के बावजूद अपने सहयोगी के साथ मिलकर हर जरूरतमंद लोगों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं।
250 से 300 भोजन के पैकेट बांटते प्रतिदिनः

एक कंपनी की एजेंसी चलाने वाले प्रियांक के दृष्टि बाधित होने के बावजूद हौसले बुलंद हैं। लॉकडाउन में कामकाज ठप होने से भुखमरी की कगार पर पहुंचे लोगों की पीड़ा का एहसास कर उन्होंने इनकी मदद करने की ठानी ली। वह भोजनशाला की व्यवस्थाएं संभालते हैं। प्रतिदिन 250 से 300 लंच पैकेट की पैकिंग, उनकी गिनती, उन्हें लोगों को सौंपना तथा जरूरत पड़ने पर सामान उपलब्ध करवाना आदि कार्य बड़े आराम से और मन लगा कर कर रहे हैं। हालांकि उनके ताऊ अजीत सक्सेना व पड़ोसी भोजन बनवाने से लेकर उसे पैक कराने में सहयोग करते हैं। शुक्रवार को प्रियांक ने छोला-आलू की सब्जी व पूड़ी बनवाकर गरीबों में वितरित किया।
10 साल की उम्र में गई थी आंखों की रोशनीः

प्रियांक सक्सेना बताते हैं कि दस साल की उम्र में क्रिकेट खेलते समय उनकी दाई आंख में गेंद लग गई थी, जिससे उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई। कई जगह इलाज करवाया, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। उनकी तीन बहनें हैं, जिनकी शादी हो चुकी है। वर्ष 2018 में मां पुष्पा देवी और 2019 में पिता श्याम सक्सेना की मृत्यु होने के बाद वह अकेले हुए, लेकिन बुलंद हौसलों के सहारे हिम्मत नहीं हारी।

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