250 से 300 भोजन के पैकेट बांटते प्रतिदिनः एक कंपनी की एजेंसी चलाने वाले प्रियांक के दृष्टि बाधित होने के बावजूद हौसले बुलंद हैं। लॉकडाउन में कामकाज ठप होने से भुखमरी की कगार पर पहुंचे लोगों की पीड़ा का एहसास कर उन्होंने इनकी मदद करने की ठानी ली। वह भोजनशाला की व्यवस्थाएं संभालते हैं। प्रतिदिन 250 से 300 लंच पैकेट की पैकिंग, उनकी गिनती, उन्हें लोगों को सौंपना तथा जरूरत पड़ने पर सामान उपलब्ध करवाना आदि कार्य बड़े आराम से और मन लगा कर कर रहे हैं। हालांकि उनके ताऊ अजीत सक्सेना व पड़ोसी भोजन बनवाने से लेकर उसे पैक कराने में सहयोग करते हैं। शुक्रवार को प्रियांक ने छोला-आलू की सब्जी व पूड़ी बनवाकर गरीबों में वितरित किया।
10 साल की उम्र में गई थी आंखों की रोशनीः प्रियांक सक्सेना बताते हैं कि दस साल की उम्र में क्रिकेट खेलते समय उनकी दाई आंख में गेंद लग गई थी, जिससे उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई। कई जगह इलाज करवाया, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। उनकी तीन बहनें हैं, जिनकी शादी हो चुकी है। वर्ष 2018 में मां पुष्पा देवी और 2019 में पिता श्याम सक्सेना की मृत्यु होने के बाद वह अकेले हुए, लेकिन बुलंद हौसलों के सहारे हिम्मत नहीं हारी।