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महोबा

मिट्टी के दियो पर भारी चाईना बाजार, कुम्हारों को नहीं हो रहा मुनाफा, गरीबों पर महंगाई की मार

दीपावली का पर्व नजदीक है और सभी इस पर्व में अपने जीवन को रौशनी से भरना चाहते है।

महोबाNov 05, 2018 / 01:06 pm

आकांक्षा सिंह

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मिट्टी के दियो पर भारी चाईना बाजार, कुम्हारों को नहीं हो रहा मुनाफा, गरीबों पर महंगाई की मार

महोबा. दीपावली का पर्व नजदीक है और सभी इस पर्व में अपने जीवन को रौशनी से भरना चाहते है। मगर महोबा जनपद में एक तबका ऐसा है जो दीये बनाकर भी अपने घर को रोशन नहीं कर पाता। इस महंगाई में दीये बनाने वाला कुम्हार बमुश्किल अपने परिवार को पाल पाता है । दीपावली में चाईना बाजार का कब्ज़ा भी इन कुम्हारों के लिए कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। शायद यहीं वजह है कि 50 वर्षों से पैतृक काम करने वाले कुम्हारों के बच्चों ने इस काम से ही नाता तोड़ लिया है।

 

महोबा के मोहल्ला भटीपुरा में रहने वाले प्रजापति समाज के लोग धीरे धीरे अपने इस काम से किनारा करते जा रहे है । इस मोहल्ले में ही तक़रीबन आधा सैकड़ा परिवार मिट्टी के दीये बनाने का काम करते थे मगर अब कुछ घरो में ही मिट्टी के दीये बनाए जाते हैं लेकिन इस पर्व पर भी चाईना बाजार ने कब्ज़ा कर लिया है और रही सही कसम मोमबत्ती कारोबार ने पूरी कर दी है। अब मिट्टी के दीये बनाने का काम सिर्फ रस्म निभाने तक ही सीमित है। आज बाजार में एक से बढ़कर एक चाइनीज, देशी-विदेशी इलेक्ट्रॉनिक डिजाइनर बल्बों की दुकान दीपावली में सजी देखी जा सकती है। महंगाई के चलते दीओ का मूल्य महंगा है जबकि इन चाइना आइटम को सस्ते में ख़रीदा जा सकता है। दिवाली या अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए ही मिट्टी के दिए इस्तेमाल होते है। वह भी सिर्फ परम्परा को जीवित रखने के लिए जबकि मिट्टी के दीये बनाने वालो के चून्हे ठण्डे होने लगे है।

भटीपुरा में रहने वाला कुम्हार हीरालाल अपने जीवन के 65 पड़ाव पार कर चूका है मगर आज भी वह चाक इस उम्मीद से घुमाता है कि इस वर्ष उसकी दीपावली भी खुशियों से भरी होगी । हीरालाल दीये बनाने के लिए दिन रात मेहनत कर करा है और बाजार में उसका परिवार इन दीयों को बेंचने जाता है मगर उन्हें उनकी मेनहत का दाम तक नहीं मिल पाता वहीँ लोग चाइना के दिए झालर लेना ज्यादा उचित समझते है । हीरालाल बताता है कि उनका ये काम पैतृक है मगर अब इसमें कोई लाभ नहीं है । पलास्टिक और चाइना से उनके काम पर फर्क पड़ा है । अब लोग मिट्टी के दिए कम ही लेते है अब सभी चाइना के दिए लेते है । और चाइना की झालर घरो में लगाते है। अब मिट्टी का काम करने के लिए मिट्टी भी नहीं मिल पाती । ग्राम समाज की जमीन पर मिट्टी खोदने पर पुलिस रोकती है वहीँ मिट्टी भी महंगी पड़ रही है । इस काम में मुनाफा कम है इसलिए अब बच्चे इस काम को नहीं करना चाहते ।

त्यौहार में भी मुनाफा नहीं होता। सिर्फ पैतृक काम करने के लिए कर रहे है जबकि परिवार के अन्य लोग महानगरों में काम कर रहे है। वहीं बाबूलाल प्रजापति बताते है कि उनके लिए ये काम करना मज़बूरी है क्योंकि उम्र के इस पड़ाव पर वो कोई और काम नहीं कर सकते। मगर उन्हें उनके काम का सही मेहनताना नहीं मिल पाता। वहीं बाजार में मिट्टी के दिए बेचने वाले दुकनदार भी मानते है कि अब मिट्टी के दीयों का कारोबार ख़त्म होता जा रहा है चाइना की बढ़ती मांग ने उनके पेट पर भी लात मारी है।

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