उन्होंने कहा कि ये बेहद दुखद है कि आजाद भारत में इस महान शख्सियत को जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया। 23 जनवरी, 1897 को कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु का विवाद भी अभी तक नहीं सुलझ पाया। बुंदेली समाज के संरक्षक अरूण चतुर्वेदी ने कहा कि 1992 में केन्द्र की तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने पहली बार उनकी शख्सियत को सम्मान दिया और भारत रत्न देने की घोषणा की, लेकिन उनके परिवार ने यह कहकर भारत रत्न लेने से इंकार कर दिया कि जब उनकी मौत का कोई सबूत नहीं मिला तो उनको मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा ठीक नहीं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गयी। महामंत्री डा. अजय बरसैया ने कहा कि जय हिन्द का सबसे पहले उदघोष करने वाले सुभाष चन्द्र बोस को मोदी सरकार ने भी 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व मदनमोहन मालवीय के साथ भारत रत्न देने की पेशकश की जिसे उनके परिजनों ने यह कहकर ठुकरा दिया कि नेताजी का कद भारत रत्न से बहुत बड़ा है। 2018 में नरेन्द्र मोदी ने लाल किला में उनके नाम से एक संग्रहालय का उद्घाटन किया।
प्रशांत बुंदेलखंडी ने कहा कि “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” नारा देने वाले नेता जी ने 21 अक्टूबर, 1943 को जो आजाद हिन्द फौज बनायी, उसमें 80 हजार सैनिक थे। उन्होंने स्वत्रंत भारत की जो पहली अस्थायी सरकार बनायी थी, उसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली और आयरलैंड ने मान्यता भी प्रदान कर दी थी। इस मौके पर पूर्व सैनिक कृष्णा शंकर जोशी, सुरेश बुंदेलखंडी, जग प्रसाद तिवारी, देवेन्द्र तिवारी, अमरचंद विश्वकर्मा, कल्लू चौरसिया, इकबाल भाई, अमन तिवारी समेत तमाम मौजूद रहे।