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मैनपुरी उपचुनाव 2022 में दलित वोटर्स का बड़ा रोल, सपा-भाजपा लगी रिझाने में

मैनपुरी उपचुनाव 2022 में सपा बनाम भाजपा की सीधी टक्कर होगी। ऐसे में दलित वोटर जो इस सीट पर मजबूत संख्या में है, उन पर सभी पार्टियों की नजर हैं। समझिए क्या है इस सीट का पूरा जातीय समीकरण।

मैनपुरीNov 24, 2022 / 10:46 pm

Harsh Pandey

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मैनपुरी लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में दलित वोटर्स निर्णायक भूमिका निभाएंगे, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस इस बार चुनावी मैदान में नहीं होंगी। मैनपुरी में 5 दिसंबर को मतदान होगा समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले मैनपुरी में डिंपल यादव और रघुराज सिंह शाक्य के बीच सीधी टक्कर है।
मुलायम सिंह यादव ने पहली बार 1996 में मैनपुर सीट से चुनाव लड़ा था और जीते थे। तब से यह सीट सपा के पास ही है। पिछले तीन दशकों में मैनपुरी में चुनाव जातियों के वोट बैंक पर ही लड़े गए हैं। यही वजह है कि उपचुनाव में मुद्दों या लहर के अलावा सपा और भाजपा दोनों की निगाहें जातिगत समीकरणों पर हैं। सपा का जोर यादव और मुस्लिम के अलावा अन्य जातियों के वोट बैंक को अपनी तरफ करने पर है।
दूसरी ओर सत्ताधारी भाजपा क्षत्रिय, ब्राह्मण, लोधी और वैश्य वोट बैंक को आकर्षित करने और अपने उम्मीदवार रघुराज सिंह शाक्य की मदद से जातीय वोट बैंक के विभाजन को भेदने की कोशिश कर रही है।
मैनपुरी सीट के चुनावी आंकड़ों से पता चलता है कि बसपा ने मैनपुरी में कई लोकसभा चुनाव लड़े हैं और जीत नहीं पाई है, लेकिन पार्टी को हमेशा महत्वपूर्ण संख्या में वोट मिले हैं। अपने कोर दलित वोटर्स की वजह से बसपा भी दूसरे नंबर पर रही है।
इस बार बसपा के मैदान में नहीं होने से सभी दलों की नजर बसपा के कोर दलित वोट बैंक पर है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक जो पार्टी बसपा का वोट बैंक अपनी तरफ खींच लेगी, वही चुनाव में कामयाब होगी।
पिछले चुनावों में ये हुआ था

2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा को टक्कर दी थी। भले ही पार्टी जीत नहीं सकी, लेकिन उसके उम्मीदवार विनय शाक्य को 2.19 लाख वोट मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा के गढ़ में बसपा प्रत्याशी संघमित्रा मौर्य को 1.42 लाख वोट मिले थे।
हालांकि सपा के साथ चुनावी गठबंधन के चलते बसपा ने 2019 में मैनपुरी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था। 2019 में मुलायम सिंह यादव ने 5.26 लाख से ज्यादा वोट पाकर चुनाव जीता था और बीजेपी प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य को करीब 94,000 वोटों से हराया था।
सपा और भाजपा की ये है रणनीति

स्थानीय विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी जानती है कि वह दलित वोटरों के सहारे मैनपुरी में जीत हासिल कर सकती है। इसलिए उसने दलित वोटों को लुभाने के लिए मंत्री असीम अरुण और सांसद रामशंकर कठेरिया को तैनात किया है। साथ ही कई अन्य दलित नेता भी इस वोट बैंक में सेंध लगाने में लगे हैं।
बीजेपी के प्रदेश संगठन महासचिव धर्मपाल सैनी भी इस सीट पर फोकस कर रहे हैं। उन्होंने दो बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और बूथ स्तर तक बैठकें कीं। इसके अलावा भाजपा का हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता पूरी ताकत से काम कर रहा है। वहीं सपा ने भी दलित और शाक्य समुदाय के वोटरों को लुभाने के लिए बसपा से कई बड़े नेताओं को मैदान में उतारा है।
सपा का जोर दलित वोट बैंक को मुसलमानों और यादवों यानी M और Y वोट बैंक को बरकरार रखने पर है। दलित नेताओं को गांवों में डेरा डालने का निर्देश दिया गया है। हालांकि, माना जा रहा है कि दलित मतदाता यादवों के साथ जाने से कतराते हैं। ऐसा कई चुनावों में देखा गया है। अगर इस बार भी ऐसा होता है तो सपा के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है।
मैनपुरी का पूरा जातीय समीकरण

India Votes की डेटा रिपोर्ट के अनुसार मैनपुरी में करीब 17 लाख मतदाता हैं। उनमें से लगभग 4.30 लाख यादव, 2.80 लाख शाक्य और 1.80 लाख दलित वोटर हैं। इसके अलावा दो लाख से अधिक ठाकुर और 1.20 लाख ब्राह्मण वोटर हैं। मैनपुरी में 1,00,000 लोधी मतदाता, 60,000 मुस्लिम और 70,000 वैश्य भी हैं।
मैनपुरी उपचुनाव में इस बार सपा और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। जातियों के समीकरण के हिसाब से कोई किसी से कम नहीं है। सपा मुलायम सिंह यादव की विरासत को बचाने के लिए लड़ रही है जबकि भाजपा सीट जीतकर बढ़त बनाना चाहती है। बीजेपी जानती है कि अगर मैनपुरी सीट उसकी झोली में आ गई तो यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने का उसका दावा मजबूत हो जाएगा।
जातिगत समीकरणों के हिसाब से इस सीट पर दलित वोट बैंक निर्णायक होता है और इसलिए दोनों पार्टियां उन्हें रिझाने में लगी हैं। इतना तय है कि नतीजा जो भी हो, मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है।

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